कभी मिलो खुद से अजनबी बनकर
जाने क्या बाते होगीं
कितनी उलझी गिरहो को सुलझाओगे
जाने कितनी लम्बी वो रात होगीं
खुद को ढुढंने बैठोगे
तो खुद को ही अजनबी पाओगे,
क्या खोया क्या पाया के
चक्कर मे ही फसकर रह जाओगे,
इस झूठी दुनिया मे खोकर
फिर से खुद को तलाशने कि
जाने कितनी ही गहरी यादे होगीं
कभी मिलो खुद से अजनबी बनकर ......
कितनी बार ही तुमने अपने
सपनो को मरता पाया होगा,
जाने कितनी कढ़वी बातो से तुमने
अपने मन को जलाया होगा,
तब तुमने खुद को कितना अकेला पाया होगा
उन कढ़वी बातो कि,उन दुख भरी रातो कि,
जाने कितनी तन्हा राते होगीं
कभी मिलो खुद से अजनबी बनकर ......
सच झूठ के फेरे मे दुनिया ने तुमको
कितनी बार ही उलझाया होगा,
अपने ही आत्मविश्वास को तुमने
कितनी बार ही गिरता पाया होगा,
सबकी नजरो मे गिरकर
फिर से खुद को संभालने की
जाने कितनी ही हौसलो कि कहानी होगीं
कभी मिलो खुद से अजनबी बनकर ......
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