vivek singh

vivek singh Lives in Singrauli, Madhya Pradesh, India

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उभरती लकीरें - किताबें कभी रद्दी नहीं होतीं, किताबें न पढ़ने से इंसान रद्दी हो जाता है। ©vivek singh

#Books  उभरती लकीरें -
किताबें कभी रद्दी नहीं होतीं, किताबें न पढ़ने से इंसान रद्दी हो जाता है।

©vivek singh

#Books

8 Love

जला अस्थियां बारी-बारी, चटकाई जिनमें चिंगारी, जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर, लिए बिना गर्दन का मोल। कलम, आज उनकी जय बोल। -रामधारी सिंह दिनकर ©vivek singh

#bipinrawat  जला अस्थियां बारी-बारी,
चटकाई जिनमें चिंगारी,
जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर,
लिए बिना गर्दन का मोल।
कलम, आज उनकी जय बोल।
-रामधारी सिंह दिनकर

©vivek singh

चल पड़े हो, तो रास्ता मिलता ही जाएगा, अंधेरा कभी भी सुबह को नहीं रोक पाया है। ©vivek singh

#Quotes  चल पड़े हो, तो रास्ता मिलता ही जाएगा,
अंधेरा कभी भी सुबह को नहीं रोक पाया है।

©vivek singh

❤️❤️

7 Love

अधूरे शब्दों की खोज़ में बैठा हूँ, मैं फ़कीर ठहरा,मौज़ में बैठा हूँ। ©vivek singh

#Quotes #alone  अधूरे शब्दों की खोज़ में बैठा हूँ,
मैं फ़कीर ठहरा,मौज़ में बैठा हूँ।

©vivek singh

#alone

8 Love

#soultouching  😍 😍 😍

#OpenPoetry जब-जब पकड़ी कलम करों में, हर किसी की मैंने पीर लिखी है। हर राधा का श्याम लिखा, और हर रांझे की हीर लिखी है। ©vivek singh

#OpenPoetry  #OpenPoetry जब-जब पकड़ी कलम करों में,
       हर किसी की मैंने पीर लिखी है।
हर राधा का श्याम लिखा,
       और हर रांझे की हीर लिखी है।

©vivek singh
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