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Govt teacher
उभरती लकीरें - किताबें कभी रद्दी नहीं होतीं, किताबें न पढ़ने से इंसान रद्दी हो जाता है। ©vivek singh
vivek singh
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जला अस्थियां बारी-बारी, चटकाई जिनमें चिंगारी, जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर, लिए बिना गर्दन का मोल। कलम, आज उनकी जय बोल। -रामधारी सिंह दिनकर ©vivek singh
7 Love
चल पड़े हो, तो रास्ता मिलता ही जाएगा, अंधेरा कभी भी सुबह को नहीं रोक पाया है। ©vivek singh
अधूरे शब्दों की खोज़ में बैठा हूँ, मैं फ़कीर ठहरा,मौज़ में बैठा हूँ। ©vivek singh
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#OpenPoetry जब-जब पकड़ी कलम करों में, हर किसी की मैंने पीर लिखी है। हर राधा का श्याम लिखा, और हर रांझे की हीर लिखी है। ©vivek singh
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