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प्यार भी जब बेक़ाबू होने लगता है ।
आप से तुम, तुम से तू होने लगता है ।
वैसे तो लगता है कुछ भी खास नहीं,
तुमसे मिलकर ज़ादू होने लगता है ।
लफ्ज़ मुहब्बत जब भी सुनायी देता है,
दर्द पिघलकर आँसू होने लगता है ।
तुम इक फूल का बेहद जीना क्या जानो,
मिटते-मिटते खुशबू होने लगता है ।
नुक़्तों का रस जब बोली में घुल जाये,
ज़र्रा-ज़र्रा उर्दू होने लगता है ।
नीरज निश्चल
©Lakhnavi shayar 2.O
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