Unsplash सहेजे हुए हैं निशानी किताबें ।
चलों ढूंढते हैं पुरानी किताबें ।
कि हर उम्र का है तसव्वुर इन्हीं में,
हैं बचपन बुढ़ापा ज़वानी किताबें ।
कभी मुस्कराहट हैं खामोश लब की,
कभी शोख आंखों का पानी किताबें ।
किसी इक सफ़र का है अहसास इनमें,
सुनाती हैं कितनी कहानी किताबें ।
अकेले में होती हैं बातें इन्हीं से,
हैं इक दोस्त की हमज़ुबानी किताबें ।
नीरज निश्चल
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