a-person-standing-on-a-beach-at-sunset प्यार भी | English Poetry

"a-person-standing-on-a-beach-at-sunset प्यार भी जब बेक़ाबू होने लगता है । आप से तुम, तुम से तू होने लगता है । वैसे तो लगता है कुछ भी खास नहीं, तुमसे मिलकर ज़ादू होने लगता है । लफ्ज़ मुहब्बत जब भी सुनायी देता है, दर्द पिघलकर आँसू होने लगता है । तुम इक फूल का बेहद जीना क्या जानो, मिटते-मिटते खुशबू होने लगता है । नुक़्तों का रस जब बोली में घुल जाये, ज़र्रा-ज़र्रा उर्दू होने लगता है । नीरज निश्चल ©Lakhnavi shayar 2.O"

 a-person-standing-on-a-beach-at-sunset 

प्यार भी जब बेक़ाबू होने लगता है ।

आप से तुम, तुम से तू होने लगता है ।


वैसे तो लगता है कुछ भी खास नहीं,

तुमसे मिलकर ज़ादू होने लगता है ।


लफ्ज़ मुहब्बत जब भी सुनायी देता है,

दर्द पिघलकर आँसू होने लगता है ।


तुम इक फूल का बेहद जीना क्या जानो,

मिटते-मिटते खुशबू होने लगता है ।


नुक़्तों का रस जब बोली में घुल जाये,

ज़र्रा-ज़र्रा उर्दू होने लगता है ।

नीरज निश्चल

©Lakhnavi shayar 2.O

a-person-standing-on-a-beach-at-sunset प्यार भी जब बेक़ाबू होने लगता है । आप से तुम, तुम से तू होने लगता है । वैसे तो लगता है कुछ भी खास नहीं, तुमसे मिलकर ज़ादू होने लगता है । लफ्ज़ मुहब्बत जब भी सुनायी देता है, दर्द पिघलकर आँसू होने लगता है । तुम इक फूल का बेहद जीना क्या जानो, मिटते-मिटते खुशबू होने लगता है । नुक़्तों का रस जब बोली में घुल जाये, ज़र्रा-ज़र्रा उर्दू होने लगता है । नीरज निश्चल ©Lakhnavi shayar 2.O

#SunSet

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