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WRITERAKSHITAJANGID Lives in Jaipur, Rajasthan, India

IG - @jangid_akshi "दिल की जुबां, कलम से बयां करती हूँ !!"

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लिखने में अक्सर कुछ समानता होती है अक्षरों के बंधन में कहीं ज्ञानता होती है पन्नों का जुड़ना कभी ग्रंथ नहीं बनता, जिल्द से ही उसकी यहाँ पूर्णता होती है गहराई में डूबा, कभी खाली नहीं निकला ये मानव की अनंत,असीम क्षमता होती है पत्तों से रास्ते बेशक ही सबको गंदे दिखे नजरिए में सबके फ़िर गहनता होती है अपूर्णता का सार, भाव पराया सा लगा पर ढांचे में सभी के, कुछ एकता होती है लिखने में अक्सर कुछ समानता होती है अक्षरों के बंधन में कहीं ज्ञानता होती है ©WRITERAKSHITAJANGID

#Books  लिखने में अक्सर कुछ समानता होती है
अक्षरों के बंधन में कहीं ज्ञानता होती है

पन्नों का जुड़ना कभी ग्रंथ नहीं बनता,
जिल्द से ही उसकी यहाँ पूर्णता होती है

गहराई में डूबा, कभी खाली नहीं निकला
ये मानव की अनंत,असीम क्षमता होती है

पत्तों से रास्ते बेशक ही सबको गंदे दिखे
नजरिए में सबके फ़िर गहनता होती है 

अपूर्णता का सार, भाव पराया सा लगा 
पर ढांचे में सभी के, कुछ एकता होती है 

लिखने में अक्सर कुछ समानता होती है
अक्षरों के बंधन में कहीं ज्ञानता होती है

©WRITERAKSHITAJANGID

#Books

14 Love

गलियारे में बंद पड़ा मैं वो "झरोखा" हूँ पर कहते है लोग, की मैं "अनोखा" हूँ गहराइयों में डुबू और भीतर घसता चलु खुद को बनाने-बिगाड़ने का एक "मौका" हूँ तरने की चाह में गहरा सा एक छोर देखूं कहीं पसंदीदा, कहीं ओझल होती "नौका" हूँ यहाँ पिंजरे में बंद पक्षी सा आँगन रहा परे सबसे मैं खुद एक काल्पनिक "धोखा" हूँ अब मिलने से खुद को मैं खुद कैसे रोकूं बनते हुए सपनों का एक अलग "खोखा" हूँ गलियारे में बंद पड़ा मैं वो "झरोखा" हूँ जिसे कहते है लोग की मैं भी "अनोखा" हूँ ©WRITERAKSHITAJANGID

#boat  गलियारे में बंद पड़ा मैं वो "झरोखा" हूँ 
पर कहते है लोग, की मैं "अनोखा" हूँ

गहराइयों में डुबू और भीतर घसता चलु 
खुद को बनाने-बिगाड़ने का एक "मौका" हूँ 

तरने की चाह में गहरा सा एक छोर देखूं 
कहीं पसंदीदा, कहीं ओझल होती "नौका" हूँ

यहाँ पिंजरे में बंद पक्षी सा आँगन रहा
परे सबसे मैं खुद एक काल्पनिक "धोखा" हूँ 

अब मिलने से खुद को मैं खुद कैसे रोकूं 
बनते हुए सपनों का एक अलग "खोखा" हूँ

गलियारे में बंद पड़ा मैं वो "झरोखा" हूँ
जिसे कहते है लोग की मैं भी "अनोखा" हूँ

©WRITERAKSHITAJANGID

#boat

20 Love

White कुछ रास्ते फ़िर खो जाते है चलते हुए से मिल जाते है बहक-2 कर बातें रुक जाती कुछ रिश्ते फ़िर थम जाते है पथ-पथ चल आखिरी छोर मिला कहीं स्वप्न दर्श सा बन जाते है बसंत में अंकुरित सी कली वो भंवरों सा राग कर जाते है यहाँ द्वार के भीतर दुनिया बसी सब पसंद से अपने रह जाते है कुछ रास्ते फ़िर खो जाते है चलते हुए से वहाँ मिल जाते है ©WRITERAKSHITAJANGID

#status #story  White 
कुछ रास्ते फ़िर खो जाते है
चलते हुए से मिल जाते है

बहक-2 कर बातें रुक जाती
कुछ रिश्ते फ़िर थम जाते है

पथ-पथ चल आखिरी छोर मिला 
कहीं स्वप्न दर्श सा बन जाते है

बसंत में अंकुरित सी कली
वो भंवरों सा राग कर जाते है

यहाँ द्वार के भीतर दुनिया बसी 
सब पसंद से अपने रह जाते है 

कुछ रास्ते फ़िर खो जाते है
चलते हुए से वहाँ मिल जाते है

©WRITERAKSHITAJANGID

#status #story

17 Love

White ख़्वाब बुनते देर लगी क्या ? कुछ लिखते हुए देर लगी क्या ? दों जीवों को देखते-देखते, सोचते-विचारते देर लगी क्या ? एक होने की प्रकट भावना कल्पना होते देर लगी क्या ? हल्के से शब्दों को जोड़ा, ये कविता बनते देर लगी क्या ? यथार्थ में या ख़्वाब भावना, अब अंतर करते देर लगी क्या ? कुछ लिखते हुए देर लगी क्या ? सोचते-विचारते देर लगी क्या ? ©WRITERAKSHITAJANGID

#February_post #GoodMorning  White ख़्वाब बुनते देर लगी क्या ?
कुछ लिखते हुए देर लगी क्या ?

दों जीवों को देखते-देखते,
सोचते-विचारते देर लगी क्या ?

एक होने की प्रकट भावना 
कल्पना होते देर लगी क्या ?

हल्के से शब्दों को जोड़ा,
ये कविता बनते देर लगी क्या ?

यथार्थ में या ख़्वाब भावना, 
अब अंतर करते देर लगी क्या ?

कुछ लिखते हुए देर लगी क्या ?
सोचते-विचारते देर लगी क्या ?

©WRITERAKSHITAJANGID

Unsplash मोहब्बत की शायरी या जिम्मेदारियों की बातें, सुकून भी देती है, ये कुछ ओझल हुई मुलाक़ातें भंवर के वेग सा भाग रहा ये मन जो यहाँ-वहाँ अपनों की तलाश और ढूंढ़ता फ़िर रहा है यादें बेशक सवाल कई, जवाब पूछते है सभी यहाँ कुछ दूर निकलते, कुछ पास मिले है राही यहाँ मंजिल की तलब में कितना पहर निकल गया लौटने को अक्सर, कई बैठे है इंतजार में यहाँ ©WRITERAKSHITAJANGID

#Book  Unsplash 

मोहब्बत की शायरी या जिम्मेदारियों की बातें,
सुकून भी देती है, ये कुछ ओझल हुई मुलाक़ातें

भंवर के वेग सा भाग रहा ये मन जो यहाँ-वहाँ
अपनों की तलाश और ढूंढ़ता फ़िर रहा है यादें

बेशक सवाल कई, जवाब पूछते है सभी यहाँ
कुछ दूर निकलते, कुछ पास मिले है राही यहाँ

मंजिल की तलब में कितना पहर निकल गया
लौटने को अक्सर, कई बैठे है इंतजार में यहाँ

©WRITERAKSHITAJANGID

#Book

15 Love

White मैं, उन लोगों को जरा क्या ही बोलु बेहतर यहीं है, की कुछ भी ना बोलु कलम की धार को थोड़ा धीमे रख करवट बदलती सी एक किताब खोलु लहजा नहीं, कुछ अलग ये मेरा सभी में अक्सर मैं खुद ही को टटोलु गुमनाम सी, गुमराह कहीं भटकती मिले तजुर्बे से अपने सब अलग ही तोलु अंदाजा खुद का खुद ही लगा बैठी यहाँ अपनों से मिलु और अपनों की बोलु ©WRITERAKSHITAJANGID

#Morning  White 

मैं, उन लोगों को जरा क्या ही बोलु 
बेहतर यहीं है, की कुछ भी ना बोलु 

कलम की धार को थोड़ा धीमे रख
करवट बदलती सी एक किताब खोलु 

लहजा नहीं,  कुछ अलग ये मेरा
सभी में अक्सर मैं खुद ही को टटोलु 

गुमनाम सी, गुमराह कहीं भटकती मिले
तजुर्बे से अपने सब अलग ही तोलु

अंदाजा खुद का खुद ही लगा बैठी यहाँ
अपनों से मिलु और अपनों की बोलु

©WRITERAKSHITAJANGID

#Morning post

13 Love

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