Sudha Pandey

Sudha Pandey

House wife(poetry writer) जिंदगी लिखने चले थे जज़्बात लिख बैठे जिगर-दर्द- बेहिसाब लिख बैठे!!

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#lightning  
मुहब्बत का अंजाम क्या होगा किसे पता। 
प्यार बदनाम भी होगा, किसे पता।। 

प्रेम के समंदर में लोग डूब जाते हैं। 
इश्क़ कत्लेआम भी होगा, किसे पता।। 

समय की आंधियों से, कितने घर टूटते देखा है। 
मुहब्बत सरेआम भी होगा ,किसे पता।। 

भाव के भूखे नहीं रहे अब लोग जमानें में। 
इश्क़ निलाम भी होगा, किसे पता।। 

इश्क़ को इबादत ,प्रेम को पुजा भी समझते हैं कुछ लोग सुधा। 
प्रेम वरदान भी होगा किसे पता।।

©Sudha Pandey

#lightning किसे पता

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वो सुरमई बादलों का घिरना, वो जोरों से चलते पवन, वो मुसलाधार बारिश, देख झूम उठता था मयूरा मन।। बैठे खिड़कियों के पास, घंटों तकते रहना, आनंदित रोमांचित होना, पानी की बूंदों से वो बूलबूले बनते और फिर उसे मिटते देखना, वो बारिश की दिनों की यादें, सच मे आज भी रोमांचित कर जाता है, अब वैसी बारिश कहा रहीं, न लौट आने वाला है वो पल, वो बारिश के बाद कागज की नाव, वो, फूस की पतवार और चिंटी का नाविक, क्या खूब थे वोभी बरसात के दिन।। ©Sudha Pandey

#titliyan  वो सुरमई बादलों का घिरना,
वो जोरों से चलते पवन, 
वो मुसलाधार बारिश, 
देख झूम उठता था मयूरा मन।। 

बैठे खिड़कियों के पास, 
घंटों तकते रहना, 
आनंदित रोमांचित होना, 
पानी की बूंदों से वो बूलबूले बनते 
और फिर उसे मिटते देखना, 
वो बारिश की दिनों की यादें, 
सच मे आज भी रोमांचित कर जाता है, 
अब वैसी बारिश कहा रहीं, 
न लौट आने वाला है वो पल, 
वो बारिश के बाद कागज की नाव, 
वो, फूस की पतवार और चिंटी का नाविक, 
क्या खूब थे वोभी बरसात के दिन।।

©Sudha Pandey

#titliyan बारिश

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 तू ही स्वरूप महागौरी, तू ही जगद्जननी काली माँ! 
दुर्गा दुर्ग विनाशिनी माता, तू ही जगत् कल्याणी माँ!!

©Sudha Pandey

तू ही स्वरूप महागौरी, तू ही जगद्जननी काली माँ! दुर्गा दुर्ग विनाशिनी माता, तू ही जगत् कल्याणी माँ!!

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 जिंदगी में जब कुछ ऐसा दौर आया! 
अच्छा हुआ सबका चेहरा साफ नजर आया!!

©Sudha Pandey

जिंदगी में जब कुछ ऐसा दौर आया! अच्छा हुआ सबका चेहरा साफ नजर आया!! ©Sudha Pandey

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 भाओं की अभिव्यक्ति है कविता, 
सरस प्रेम रसधार है कविता, 
जीवन में मधुमास है कविता, 
शब्द शब्द पिरो कर बनती, 
कवियों की गले हार है कविता!!
अंतरमन की वेदना है कविता, 
अव्यक्त संवेदना है कविता, 
दुष्टों पर प्रहार है कविता,
कुंठित मन की व्यथा कह जाती, 
नव जीवन की आधार है कविता!!

©Sudha Pandey

मेरी कविता

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 चंचल चीत कोमल काया,अधर स्पंदन करना भूल गया है! 
जिंदगी में अब लगता है ,खामोशी का दस्तक होने लगा है!! 

उर सागर में नहीं अब लहरें उठती, दिल मचलना भूल गया है! 
जिंदगी में अब लगता है, खामोशी का दस्तक होने लगा है!! 

न आह्लादित ही मन अब होता है, नैन अश्रु सुख गए हैं! 
जिंदगी में अब लगता है, खामोशी दस्तक देने लगा है!! 

वीरान पड़ी है अब दिल की नगरी,घोर अंधेरा होने लगा है! 
जिंदगी में अब लगता है, खामोशी दस्तक देने लगा है!!

©Sudha Pandey

चंचल चीत कोमल काया,अधर स्पंदन करना भूल गया है! जिंदगी में अब लगता है ,खामोशी का दस्तक होने लगा है!! उर सागर में नहीं अब लहरें उठती, दिल मचलना भूल गया है! जिंदगी में अब लगता है, खामोशी का दस्तक होने लगा है!! न आह्लादित ही मन अब होता है, नैन अश्रु सुख गए हैं! जिंदगी में अब लगता है, खामोशी दस्तक देने लगा है!! वीरान पड़ी है अब दिल की नगरी,घोर अंधेरा होने लगा है! जिंदगी में अब लगता है, खामोशी दस्तक देने लगा है!! ©Sudha Pandey

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