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पृथ्वी में आवेग आए तो वो जब चाहे अपने मन के भार को किसी ना किसी रूप में निकाल ही देती हैं पर मानव मन में आवेग आए तो उससे निकले प्रदार्थ को कोई धरातल नहीं समेट सकती हैं.... ©vidushi MISHRA
vidushi MISHRA
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White एक बात तो बताओ अगर वीरह और वेदना में डूब जाने के बाद अगर अनन्त सुख की प्राप्ति हो भी जाए तो क्या वाकई इंसान परिपक्व हो जाता है अपने जीवन यापन के लिए या शून्यता की अनुभूति उसे हर सुखों से वंचित कर देती है या फिर जीवन के वास्तविक ज्ञान और भौतिक सुखों में वो उलझ कर रह जाता है ©vidushi MISHRA
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Unsplash इस हद तक बेजार हो रही हूॅं मैं इस मुस्कुराहट के साथ खुद को खुद ही नहीं समझ पा रही अगर टूट ही गई हूॅं तो बिखर क्यों नहीं जा रही क्यों उम्मीद के दामन का एक धागा खुद की उंगलियों में लपेट रखी हूॅं ©vidushi MISHRA
White इंसान की समस्या मूलतः व्यक्तिगत होती है उसे कोशिश भी यही करनी चाहिए की व्यक्तिगत तौर पर ही उन समस्याओं को निपटा ले..…. ©vidushi MISHRA
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White भला बताओ तो कैसे आ सकती है मुझे नींद आंखों की राहत के लिए एक दो झपकी ले भी लूं पर नींद तो नहीं आ सकती वजह न पूछना क्योंकि वो बातें इतनी गहरी है कि तुम उतर भी नहीं पाओगे मुझमें और उतर भी गए तो यकीन मानो डूब जाओगे तैर नहीं पाओगे ये मैं ही जानती हूॅं मैं कैसे तैरती हूॅं उन तमाम बातों के साथ...... ©vidushi MISHRA
White बेहद लगाव नहीं रखना चाहती मैं अब किसी से भी क्योंकि खुद को फिर से खोना नहीं चाहती बिखरी थीं जो पिछली दफा अब तक पूरी ना सीमट सकी मैं..... ©vidushi MISHRA
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