Unsplash इस हद तक बेजार हो रही हूॅं मैं इस मुस्कु | हिंदी विचार

"Unsplash इस हद तक बेजार हो रही हूॅं मैं इस मुस्कुराहट के साथ खुद को खुद ही नहीं समझ पा रही अगर टूट ही गई हूॅं तो बिखर क्यों नहीं जा रही क्यों उम्मीद के दामन का एक धागा खुद की उंगलियों में लपेट रखी हूॅं ©vidushi MISHRA"

 Unsplash इस हद तक बेजार हो रही हूॅं मैं
 इस मुस्कुराहट के साथ 
खुद को खुद ही नहीं समझ पा रही 
अगर
 टूट ही गई हूॅं तो बिखर क्यों नहीं जा रही
 क्यों 
उम्मीद के दामन का एक धागा 
खुद की उंगलियों में लपेट 
रखी हूॅं

©vidushi MISHRA

Unsplash इस हद तक बेजार हो रही हूॅं मैं इस मुस्कुराहट के साथ खुद को खुद ही नहीं समझ पा रही अगर टूट ही गई हूॅं तो बिखर क्यों नहीं जा रही क्यों उम्मीद के दामन का एक धागा खुद की उंगलियों में लपेट रखी हूॅं ©vidushi MISHRA

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