पृथ्वी में आवेग आए तो वो जब चाहे अपने मन के भार | हिंदी भक्ति

"पृथ्वी में आवेग आए तो वो जब चाहे अपने मन के भार को किसी ना किसी रूप में निकाल ही देती हैं पर मानव मन में आवेग आए तो उससे निकले प्रदार्थ को कोई धरातल नहीं समेट सकती हैं.... ©vidushi MISHRA"

 पृथ्वी में आवेग आए  तो 
वो 
जब चाहे अपने मन के भार को
 किसी ना किसी रूप में निकाल
 ही देती हैं 
पर 
मानव मन में आवेग आए
 तो 
उससे निकले प्रदार्थ को 
कोई धरातल नहीं समेट
 सकती हैं....

©vidushi MISHRA

पृथ्वी में आवेग आए तो वो जब चाहे अपने मन के भार को किसी ना किसी रूप में निकाल ही देती हैं पर मानव मन में आवेग आए तो उससे निकले प्रदार्थ को कोई धरातल नहीं समेट सकती हैं.... ©vidushi MISHRA

#thought जय श्री राम

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