DrNidhi Srivastava

DrNidhi Srivastava

  • Latest
  • Popular
  • Video

White “चांद तन्हा ही रहा” चांद तन्हा ही रहा, सफर करता रहा। मंजिल मिली नहीं कभी, फिर भी चलता ही रहा। चांद तन्हा ही रहा। सूरज से मिली जलन, कभी दिखाता नहीं। अपने शीतल किरन, जग को देता ही रहा। चांद तन्हा ही रहा। टूट कर जब सिमटने लगा, खुद को बिखरने से रोकने लगा। अमावस से निकल आंसुओं को मिटा, पूनम की छटा बिखेरने लगा। चांद तन्हा ही रहा।। ©® डा०निधि श्रीवास्तव “सरोद” ©DrNidhi Srivastava

#कविता #good_night #chaand #Hindi  White “चांद तन्हा ही रहा”

चांद तन्हा ही रहा,
सफर करता रहा।
मंजिल मिली नहीं कभी,
फिर भी चलता ही रहा।
चांद तन्हा ही रहा।

सूरज से मिली जलन,
कभी दिखाता नहीं।
अपने शीतल किरन,
जग को देता ही रहा।
चांद तन्हा ही रहा।

टूट कर जब सिमटने लगा,
खुद को बिखरने से रोकने लगा।
अमावस से निकल आंसुओं को मिटा,
पूनम की छटा बिखेरने लगा।
चांद तन्हा ही रहा।।
©® डा०निधि श्रीवास्तव “सरोद”

©DrNidhi Srivastava

#good_night #chaand #Hindi shayri

16 Love

“पलाश” मैं निहार रही हूं तुम्हें, मुग्ध हूं, तुम्हारे विराट सौन्दर्य पर, हे पलाश! क्या तुम से सुंदर कोई हो सकता है? तुम्हारे पत्ते हवा में झूम रहे हैं, मानों खुशी से नाच रहे हैं। तुम्हारी जड़ों की ताकत, अनमोल है इस धरा पर, हे पलाश! क्या तुमसे ताकतवर कोई हो सकता है बिन सुगंध ही जीवन को महका रहे है मानों सबको उड़ना सीखा रहे है। उलझनें ज़िन्दगी की है कितनी, ठहर कर पल भर देख लूं तुमको हे पलाश! क्या जी भर कोई देख सकता है जड़ से पुष्प तक समर्पित हो रहे हैं मानों स्वयं में समाहित हो रहे हैं। ©DrNidhi Srivastava

#कविता  “पलाश”
मैं निहार रही हूं तुम्हें,
मुग्ध हूं, तुम्हारे विराट सौन्दर्य पर,
हे पलाश! क्या तुम से सुंदर कोई हो सकता है?
तुम्हारे पत्ते हवा में झूम रहे हैं,
मानों खुशी से नाच रहे हैं।

तुम्हारी जड़ों की ताकत,
अनमोल है इस धरा पर,
हे पलाश! क्या तुमसे ताकतवर कोई हो सकता है
बिन सुगंध ही जीवन को महका रहे है
मानों सबको उड़ना सीखा रहे है।

उलझनें ज़िन्दगी की है कितनी,
ठहर कर पल भर देख लूं तुमको
हे पलाश! क्या जी भर कोई देख सकता है
जड़ से पुष्प तक समर्पित हो रहे हैं
मानों स्वयं में समाहित हो रहे हैं।

©DrNidhi Srivastava

“पलाश” मैं निहार रही हूं तुम्हें, मुग्ध हूं, तुम्हारे विराट सौन्दर्य पर, हे पलाश! क्या तुम से सुंदर कोई हो सकता है? तुम्हारे पत्ते हवा में झूम रहे हैं, मानों खुशी से नाच रहे हैं। तुम्हारी जड़ों की ताकत, अनमोल है इस धरा पर, हे पलाश! क्या तुमसे ताकतवर कोई हो सकता है बिन सुगंध ही जीवन को महका रहे है मानों सबको उड़ना सीखा रहे है। उलझनें ज़िन्दगी की है कितनी, ठहर कर पल भर देख लूं तुमको हे पलाश! क्या जी भर कोई देख सकता है जड़ से पुष्प तक समर्पित हो रहे हैं मानों स्वयं में समाहित हो रहे हैं। ©DrNidhi Srivastava

6 Love

यूं ही नही गिरती वृक्षों से, ये शुष्क पीली पत्तियां। वर्षों की हरितिमा छुपाए मन में, ये कमजोर पत्तियां। प्रात की ओस लिए, भोर की आस लिए, दिनमान को समेटे, असंख्य रश्मियों में लिपटी, नए कोंपल को जगह देती, ये उदार पत्तियां। यूं ही नहीं बिखरती बेलों से, ये शुष्क पीली पत्तियां। थीं कभी शान वटों की, थिरकती थीं संग बसंत के, करती थीं मनुहार बादलों से, सावन में बरसने को, अनगिनत स्वप्न सजाती, ये तरुणायी में पत्तियां। यूं ही नहीं टूट जाती अपनों से, ये उदास पत्तियां। यूं ही नही गिरती वृक्षों से, ये शुष्क पीली पत्तियां। ©DrNidhi Srivastava

#poetrycollection #कविता #foryoupage #HindiPoem #fyp  यूं ही नही गिरती वृक्षों से,
ये शुष्क पीली पत्तियां।
वर्षों की हरितिमा छुपाए मन में,
ये कमजोर पत्तियां।
प्रात की ओस लिए,
भोर की आस लिए,
दिनमान को समेटे,
असंख्य रश्मियों में लिपटी,
नए कोंपल को जगह देती,
ये उदार पत्तियां।
यूं ही नहीं बिखरती बेलों से,
ये शुष्क पीली पत्तियां।
थीं कभी शान वटों की,
थिरकती थीं संग बसंत के,
करती थीं मनुहार बादलों से,
सावन में बरसने को,
अनगिनत स्वप्न सजाती,
ये तरुणायी में पत्तियां।
यूं ही नहीं टूट जाती अपनों से,
ये उदास पत्तियां।
यूं ही नही गिरती वृक्षों से,
ये शुष्क पीली पत्तियां।

©DrNidhi Srivastava

White खुल के हंसे जमाना बीत गया। आइना देख शर्माना बीत गया। वो कहते है कि आता नही हमें कुछ, क्या करे वो अल्हड़ ज़माना बीत गया। © डा० निधि श्रीवास्तव "सरोद" ©DrNidhi Srivastava

#कविता #Sad_Status  White खुल के हंसे जमाना बीत गया।
आइना देख शर्माना बीत गया।
वो कहते है कि आता नही हमें कुछ,
क्या करे वो अल्हड़ ज़माना बीत गया।
© डा० निधि श्रीवास्तव "सरोद"

©DrNidhi Srivastava

#Sad_Status

15 Love

White मैं क्या मेरा वजूद क्या, मेरी आस्था मेरा विश्वास तू। दर्द के रेत में भी, स्नेह की बहती नदी तू। घने कोहरे में, आस की मद्धम रोशनी तू। तेरे अंक से लिपटकर, मिल जाये एक ऊर्जा नयी । जिन्दगी भर शांत नदी सी, बहती ही रही। तेरे भीतर दुनिया कोई, साथ चलती रही। नींद नहीं तेरे आँखों में, पर छोटे छोटे सपनें कई। रिश्तो के धागों से बुनकर, घर आँगन को सजाई तू। हम लय गति से भटकें जब, तब तब मादल होती तू। मेरा सारा जीवन तेरे नाम। तुझ पर ही मेरा सब कुर्बान। ©DrNidhi Srivastava

#कविता #mothers_day  White मैं क्या मेरा वजूद क्या,
मेरी आस्था मेरा विश्वास तू।
दर्द के रेत में भी,
स्नेह की बहती नदी तू।
घने कोहरे में,
आस की मद्धम रोशनी तू।
तेरे अंक से लिपटकर,
मिल जाये एक ऊर्जा नयी ।
जिन्दगी भर शांत नदी सी,
बहती ही रही।
तेरे भीतर दुनिया कोई,
साथ चलती रही।
नींद नहीं तेरे आँखों में,
पर छोटे छोटे सपनें कई।
रिश्तो के धागों से बुनकर,
घर आँगन को सजाई तू।
हम लय गति से भटकें जब,
तब तब मादल होती तू।
मेरा सारा जीवन तेरे नाम।
तुझ पर ही मेरा सब कुर्बान।

©DrNidhi Srivastava

#mothers_day

12 Love

#akshaya_tritiya_2024 #कविता  White “मिटने को फिर एक बार”

कितनी बार शुरू करूं वहीं से,
दूर पहुंच जाती हूं कई बार,
फिर करनी ही पड़ती है,
एक नई शुरुआत हर बार,
जैसे मिली हूं पहली बार।
क्यूं बिखर जाऊं मैं,
सोचकर लौट जाती हूं,
तिनका तिनका जोड़ने,
फिर वहीं पहुंच जाती हूं,
जुड़ने को फिर एक बार।
सोचती हूं बस हर बार,
नहीं लौटूंगी इस बार,
दूर और दूर निकल जाऊंगी,
सबसे ओझल हो जाऊंगी,
नहीं मनाऊंगी इस बार।
मगर चली आती हूं बार बार,
अंतर्मन के अंतर्द्वद्व के साथ,
नई ऊर्जा व विश्वास के साथ,
फिर वही सृजन की चाह लिए,
मिटने को फिर एक बार।
© डा० निधि श्रीवास्तव “सरोद”…

©DrNidhi Srivastava
Trending Topic