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**गृहणी का स्वर**
क्यों कहें कि गृहणी का स्वर,
दब जाए हर इक कोने पर?
क्यों न गूंजे उसकी वाणी,
स्नेह भरी, ममता की रवानी।
वो जो दिन-रात घर संवारती है,
हर सपने को आकार देती है।
क्या उसका स्वर इतना हल्का हो,
कि आंधियों में दबा सा लगे?
नहीं, गृहणी का भी अधिकार है,
अपने मन के विचार है।
उसकी बातें भी हों मुखर,
घर के आंगन में गूंजे स्वर।
वो शांति का दीप जला सकती है,
तो संघर्ष का बिगुल बजा सकती है।
उसके स्वर की मिठास भी सुनो,
पर उसकी ताकत की परख करो।
दबाना नहीं, उसे समझो तुम,
गृहणी है, कोई मौन नहीं।
उसका स्वर हो प्रेम का गान,
न दबा हो, न चढ़ा अभिमान
©Writer Mamta Ambedkar
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