Kunwar Saab

Kunwar Saab Lives in New Delhi, Delhi, India

I am engineer by education a lawyer by profession but poet by passion

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कहने को कुछ बचा हो तो कहते हम, ताउम्र कहते ही तो आये हैं हम। आओ मेरे तसव्वुर से निकल कर, तुम असल बनो इक सूरत इख़्तियार कर। के सदियों से जो क़तरे जोड़ता आया हूँ, बह निकलो तुम सीने से दरिया निकाल कर। एक एक तारा जो इकठ्ठा किया है मैने, चुपके से बिखर जाओ तुम एक क़ायनात सँवार कर। बस बहोत हो चुका तुम्हे छुपाना बचाना, सबको बताओ तुम मेरी हो अपना दिल हार कर। आशुतोष कुमार 'कुँवर'

#तस्वीर  कहने को कुछ बचा हो तो कहते हम,
ताउम्र कहते ही तो आये हैं हम।
आओ मेरे तसव्वुर से निकल कर,
तुम असल बनो इक सूरत इख़्तियार कर।
के सदियों से जो क़तरे जोड़ता आया हूँ,
बह निकलो तुम सीने से दरिया निकाल कर।
एक एक तारा जो इकठ्ठा किया है मैने,
चुपके से बिखर जाओ तुम एक क़ायनात सँवार कर।
बस बहोत हो चुका तुम्हे छुपाना बचाना,
सबको बताओ तुम मेरी हो अपना दिल हार कर।

आशुतोष कुमार 'कुँवर'

#तस्वीर-ए-तस्सवुर

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अपनों के दिए दर्स के निशान जिगर को चाक कर गए सारे हौसलों से हम गए ख्वाबों को ख़ाक कर गए रहम - ओ - करम पे ज़माने की अब करते हैं हम बसर बशर की शह औ मात से थक हार हम गए क्या दिन थे वो कुंवर की चर्चे हज़ार थे दिन वो भी आ गए की सब गुज़ार हम गए आशुतोष कुमार कुंवर * दर्स - सबक बशर - शतरंज

#khayalonkechilmanse  अपनों के दिए दर्स के निशान जिगर को चाक कर गए
सारे हौसलों से हम गए ख्वाबों को ख़ाक कर गए
रहम - ओ - करम पे ज़माने की अब करते हैं हम बसर
बशर की शह औ मात से थक हार हम गए
क्या दिन थे वो कुंवर की चर्चे हज़ार थे
दिन वो भी आ गए की सब गुज़ार हम गए

आशुतोष कुमार कुंवर
* दर्स - सबक
बशर - शतरंज

यूँ तो मेरी ज़िन्दगी में वीरानियाँ थी नाकामियां थी, तेरे आ जाने से मगर अब खिलखिलाता हु मैं। हँसता था मैं पहले भी पर उससे छुपा लेता था परेशानियाँ अपनी, तेरे आने से अब परेशानियों में भी मुस्कुरा लेता हूं मैं। दिल पे ज्यूँ हर पल एक बोझ सा लिये फिरता था, की तेरे आने से हर बोझ का वज़न आसानी से उठाता हु मैं। रिश्ते हज़ारो थे आस पास मेरे हमेशा, तेरे आ जाने से रिश्ते का अब लुत्फ उठा पाता हूं मैं। तुझे शायद गुमां नही की कितनी अहम है तू मेरी ज़िंदगी मे, बस इतना समझ की तेरे होने से मुक़म्मल हो जाता हूं मैं। आशुतोष कुमार "कुँवर"

#तेरेआनेसे #कुँवर #इश्क़  यूँ तो मेरी ज़िन्दगी में वीरानियाँ थी नाकामियां थी,
तेरे आ जाने से मगर अब खिलखिलाता हु मैं।
हँसता था मैं पहले भी पर उससे छुपा लेता था परेशानियाँ अपनी,
तेरे आने से अब परेशानियों में भी मुस्कुरा लेता हूं मैं।
दिल पे ज्यूँ हर पल एक बोझ सा लिये फिरता था,
की तेरे आने से हर बोझ का वज़न आसानी से उठाता हु मैं।
रिश्ते हज़ारो थे आस पास मेरे हमेशा,
तेरे आ जाने से रिश्ते का अब लुत्फ उठा पाता हूं मैं।
तुझे शायद गुमां नही की कितनी अहम है तू मेरी ज़िंदगी मे,
बस इतना समझ की तेरे होने से मुक़म्मल हो जाता हूं मैं।

आशुतोष कुमार "कुँवर"
#आकांक्षा

मेरे खामोश अल्फ़ाज़ मेरी बेआवाज़ धड़कन मेरे सूखे अश्क मेरी गीली सांसे सब मिल कर बस आरज़ू-ए-मोहब्बत में शोर करते हैं। जो तेरी एक नज़र ए इनायत हो तो इस बाज़ार में भी कुछ सन्नाटा पसरे। आशुतोष कुमार 'कुँवर'

#मैऔरमेरीमुहब्बत  मेरे खामोश अल्फ़ाज़ मेरी बेआवाज़ धड़कन 
मेरे सूखे अश्क मेरी गीली सांसे 
सब मिल कर बस आरज़ू-ए-मोहब्बत में शोर करते हैं।
जो तेरी एक नज़र ए इनायत हो तो इस बाज़ार में भी कुछ सन्नाटा पसरे।

आशुतोष कुमार 'कुँवर'

आज दिल मे कई दर्द उभरे हुए हैं कुछ अपने अब समझदार बन गए हैं। गलती जो है हमारी बस इतनी सी है हम जवानी में भी अपना बचपन संजोये हैं। अब छुटकी को चिढ़ाने से वो नाराज़ हो जाती है छोटू को अपने बड़े हो जाने का एहसास हो जाता है। माँ कहती हैं अब अच्छी नही लगती ये नादानियां पिताजी कहते हैं कि अब तो उठाओ ज़िम्मेदारियाँ। हाँ मैं घर से निकलते ही बड़ा हो जाता हूँ बेवजह भी किसी और कि खातिर खड़ा हो जाता हूँ। पर मैं घर लौटता हूँ तो बचपन जीना चाहता हूँ ज़िन्दगी के हर ज़हर को हँस कर पीना चाहता हूँ। क्यों इतनी ज़िद्दी हैं ज़माने की ये रस्में सारी क्या ज़रूरी है हर वक़्त कसमे याद दिलानी सारी। ऐसा नही की मुझे बड़े होने का एहसास नहीं पर ये घर पे भी बताना होगा इसका एहसास नहीं। मुझसे मेरा सुकूं मेरा आशियाना मत छीनो यूँ मेरी यादों से बचपन का तराना मत छीनो। उन यादों की ताकत ही तो मेरे जीने का बहाना है मुझे तड़पाने को तो काफी ये ज़माना है। अगर जो वही माहौल परिंदे के घोसले में भी होगा शिकारियो से बचने का ठिकाना फिर कहाँ होगा? आशुतोष कुमार 'कुँवर'

#बड़प्पनऔरबचपन  आज दिल मे कई दर्द उभरे हुए हैं
कुछ अपने अब समझदार बन गए हैं।
गलती जो है हमारी बस इतनी सी है
हम जवानी में भी अपना बचपन संजोये हैं।
अब छुटकी को चिढ़ाने से वो नाराज़ हो जाती है
छोटू को अपने बड़े हो जाने का एहसास हो जाता है।
माँ कहती हैं अब अच्छी नही लगती ये नादानियां
पिताजी कहते हैं कि अब तो उठाओ ज़िम्मेदारियाँ।
हाँ मैं घर से निकलते ही बड़ा हो जाता हूँ
बेवजह भी किसी और कि खातिर खड़ा हो जाता हूँ।
पर मैं घर लौटता हूँ तो बचपन जीना चाहता हूँ
ज़िन्दगी के हर ज़हर को हँस कर पीना चाहता हूँ।
क्यों इतनी ज़िद्दी हैं ज़माने की ये रस्में सारी
क्या ज़रूरी है हर वक़्त कसमे याद दिलानी सारी।
ऐसा नही की मुझे बड़े होने का एहसास नहीं
पर ये घर पे भी बताना होगा इसका एहसास नहीं।
मुझसे मेरा सुकूं मेरा आशियाना मत छीनो
यूँ मेरी यादों से बचपन का तराना मत छीनो।
उन यादों की ताकत ही तो मेरे जीने का बहाना है
मुझे तड़पाने को तो काफी ये ज़माना है।
अगर जो वही माहौल परिंदे के घोसले में भी होगा 
शिकारियो से बचने का ठिकाना फिर कहाँ होगा?

आशुतोष कुमार 'कुँवर'
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