आज दिल मे कई दर्द उभरे हुए हैं कुछ अपने अब समझदार

"आज दिल मे कई दर्द उभरे हुए हैं कुछ अपने अब समझदार बन गए हैं। गलती जो है हमारी बस इतनी सी है हम जवानी में भी अपना बचपन संजोये हैं। अब छुटकी को चिढ़ाने से वो नाराज़ हो जाती है छोटू को अपने बड़े हो जाने का एहसास हो जाता है। माँ कहती हैं अब अच्छी नही लगती ये नादानियां पिताजी कहते हैं कि अब तो उठाओ ज़िम्मेदारियाँ। हाँ मैं घर से निकलते ही बड़ा हो जाता हूँ बेवजह भी किसी और कि खातिर खड़ा हो जाता हूँ। पर मैं घर लौटता हूँ तो बचपन जीना चाहता हूँ ज़िन्दगी के हर ज़हर को हँस कर पीना चाहता हूँ। क्यों इतनी ज़िद्दी हैं ज़माने की ये रस्में सारी क्या ज़रूरी है हर वक़्त कसमे याद दिलानी सारी। ऐसा नही की मुझे बड़े होने का एहसास नहीं पर ये घर पे भी बताना होगा इसका एहसास नहीं। मुझसे मेरा सुकूं मेरा आशियाना मत छीनो यूँ मेरी यादों से बचपन का तराना मत छीनो। उन यादों की ताकत ही तो मेरे जीने का बहाना है मुझे तड़पाने को तो काफी ये ज़माना है। अगर जो वही माहौल परिंदे के घोसले में भी होगा शिकारियो से बचने का ठिकाना फिर कहाँ होगा? आशुतोष कुमार 'कुँवर'"

 आज दिल मे कई दर्द उभरे हुए हैं
कुछ अपने अब समझदार बन गए हैं।
गलती जो है हमारी बस इतनी सी है
हम जवानी में भी अपना बचपन संजोये हैं।
अब छुटकी को चिढ़ाने से वो नाराज़ हो जाती है
छोटू को अपने बड़े हो जाने का एहसास हो जाता है।
माँ कहती हैं अब अच्छी नही लगती ये नादानियां
पिताजी कहते हैं कि अब तो उठाओ ज़िम्मेदारियाँ।
हाँ मैं घर से निकलते ही बड़ा हो जाता हूँ
बेवजह भी किसी और कि खातिर खड़ा हो जाता हूँ।
पर मैं घर लौटता हूँ तो बचपन जीना चाहता हूँ
ज़िन्दगी के हर ज़हर को हँस कर पीना चाहता हूँ।
क्यों इतनी ज़िद्दी हैं ज़माने की ये रस्में सारी
क्या ज़रूरी है हर वक़्त कसमे याद दिलानी सारी।
ऐसा नही की मुझे बड़े होने का एहसास नहीं
पर ये घर पे भी बताना होगा इसका एहसास नहीं।
मुझसे मेरा सुकूं मेरा आशियाना मत छीनो
यूँ मेरी यादों से बचपन का तराना मत छीनो।
उन यादों की ताकत ही तो मेरे जीने का बहाना है
मुझे तड़पाने को तो काफी ये ज़माना है।
अगर जो वही माहौल परिंदे के घोसले में भी होगा 
शिकारियो से बचने का ठिकाना फिर कहाँ होगा?

आशुतोष कुमार 'कुँवर'

आज दिल मे कई दर्द उभरे हुए हैं कुछ अपने अब समझदार बन गए हैं। गलती जो है हमारी बस इतनी सी है हम जवानी में भी अपना बचपन संजोये हैं। अब छुटकी को चिढ़ाने से वो नाराज़ हो जाती है छोटू को अपने बड़े हो जाने का एहसास हो जाता है। माँ कहती हैं अब अच्छी नही लगती ये नादानियां पिताजी कहते हैं कि अब तो उठाओ ज़िम्मेदारियाँ। हाँ मैं घर से निकलते ही बड़ा हो जाता हूँ बेवजह भी किसी और कि खातिर खड़ा हो जाता हूँ। पर मैं घर लौटता हूँ तो बचपन जीना चाहता हूँ ज़िन्दगी के हर ज़हर को हँस कर पीना चाहता हूँ। क्यों इतनी ज़िद्दी हैं ज़माने की ये रस्में सारी क्या ज़रूरी है हर वक़्त कसमे याद दिलानी सारी। ऐसा नही की मुझे बड़े होने का एहसास नहीं पर ये घर पे भी बताना होगा इसका एहसास नहीं। मुझसे मेरा सुकूं मेरा आशियाना मत छीनो यूँ मेरी यादों से बचपन का तराना मत छीनो। उन यादों की ताकत ही तो मेरे जीने का बहाना है मुझे तड़पाने को तो काफी ये ज़माना है। अगर जो वही माहौल परिंदे के घोसले में भी होगा शिकारियो से बचने का ठिकाना फिर कहाँ होगा? आशुतोष कुमार 'कुँवर'

#बड़प्पनऔरबचपन

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