अपनों के दिए दर्स के निशान जिगर को चाक कर गए
सारे हौसलों से हम गए ख्वाबों को ख़ाक कर गए
रहम - ओ - करम पे ज़माने की अब करते हैं हम बसर
बशर की शह औ मात से थक हार हम गए
क्या दिन थे वो कुंवर की चर्चे हज़ार थे
दिन वो भी आ गए की सब गुज़ार हम गए
आशुतोष कुमार कुंवर
* दर्स - सबक
बशर - शतरंज
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