"मंद मंद मुस्कुराता असुर "
दूर बैठा देख रहा वो
चले गए अपने चालों को,
चालाकी के कर्म से अपने
जब जीत गया वो वारों में
द्वेष के फेंके पासे ने
दिखा दिये अपनी चाल
प्यादों के टकराव से
मचल उठा उसका अंतर्मन
चेहरे पर कई चेहरे छुपाकर
परबुद्धि मानुष को ढाल बनाकर
किया पीठ पर वार
वो भी बिन बरछी, बिन बाण
बैठ के किसी कोने पर
धृतराष्ट्र सा अंधा असुर
अपने छल से जीते चाल पर
कपटी सी मुस्कान लिए
मंद मंद मुस्कुराता है
हाँ पर वो शायद भूल चूका है
ईश्वर के बनाये कर्म चक्र को
जो लौट के ख़ुद पर आएगा
ख़ुद के खोदे गड्ढे में जब
ख़ुद एक दिन गिर जायेगा
तब कर्म हँसेगा तुझ पर बन्दे
और देख तुझे भी मंद मंद मुस्कुरायेगा......
©Rina
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