Rina

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#कविता #autumn  कड़वी सी लगने लगी हूँ अब मैं....
अब रही न वैसी मैं ,जैसा लोगो ने देखा था
एक समय था वो, जो शायद मेरा अपना ही था
छुई मुई,अधरों पर मिठास लिए,कोमलांगी सी 
ऐसा मैं नहीं कहती हूँ ,अपनों ने कहा था मुझसे 
फिर अब ऐसा क्या हुआ, जो चुभने लगी हूँ मैं
 चटक मिर्च सा तेज़ है मेरे हर एक शब्द में 
जुबां से निकलकर, कानों मे जब ये पड़ते हैँ 
तब शब्दों के कम्पन से, ह्रदय डोल सा जाता है
ऐसा मैं नहीं कहती हूँ, अपनों ने राग अलापा है
मेरी तेज़ जुबां अब शायद, दिल पर जख्म सा करते हैँ
पर ये विचार नहीं करते हैँ लोग , क्यों ऐसी हो गई हूँ मैं 
मेरे इस बदलाव मे, लोगो का बड़ा हाथ हैँ
मासूमियत को मेरी, कमजोरी समझा लोगो ने
धैर्य और शांतपन का, ख़ूब उपहास उड़ाया है
देखा है मैंने वक्त वक्त पर लोगों को बदलते
तब जाकर बदला मैंने भी, अपने हर एक शब्द का लहज़ा 
इसलिए तो मैं ,कड़वी सी लगने लगी हूँ अब....

©Rina

#autumn

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#NatureQuotes  Nature Quotes TRY TO B HAPPY......
Be happy, Be happy
Be happy in every situation
The more you think
 The more you will confused
Why get confused and why get sob
Solve the problems
Make the solved better
Don't tormet your mind
By becoming a frog in the well
Be the man and be the lion
In your life's
Spread your wings like a birds
Be the king of your life
Why enslave other's? Whyyyy
Remember, and remember
Lifes comes once, not again and again
Soooo
It is better to improve yourself, take you time
Be your advisor than the advice of others
So man, try to be happy,happy once again 🙂

©Rina

#NatureQuotes

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#कविता #thelunarcycle  परिवर्तन को स्वीकार करो......
स्वीकार करो, स्वीकार करो, परिवर्तन को स्वीकार करो
गतिशील है ये जीवन, तो परिस्थितियों का बदलना निश्चित है
जानते हुए भी,फिर क्यों एक स्थिति को पकड़ना है
उसके चले जाने पर, क्यों रोना धोना है
बदलाव जरुरी है जीवन में, इसे आत्मसात करो
आये नये बदलाव में, क्या पीछे छूट गया था
उसे सोच समझकर, नए सिरे से शुरुवात करो
रह गया हो जो बाकी कुछ, उसमे कुछ सुधार करो
टूटे फूटे लम्हों को, फिर से आपस में जोड़कर
नये रंग डालकर, नये चित्र उकेर कर, नया लम्हा तैयार करो
नये लम्हें में, नई उम्मीदो की बगिया सजाकर
उस बगिया में, सुन्दर सपनो के रंग भरो
नीले, पीले, लाल, सुनहरे, अदभुत रंगों की दुनियाँ के
तुम स्वयं एक सृजनकार बनो
होगी ये दुनियाँ, पहले से सुन्दर,मन में ये विश्वास रखो
क्यूंकि तुमने बेहतर बनकर, स्वीकार किया है नये जीवन को.....

©Rina
#कविता #intezar  बैठूंगी शांत एकांत में......
जीवन की इस आपा धापी में, भूल सी गई हूँ अपने आप को
मेरी शख्सियत भी अब,अपना वजूद मांगती है मुझसे हर बात पे
क्या थी मैं,अब क्या हूँ मैं, ये सवाल करती है बात बात पे
एक समय अनंत गगन के उन्मुक्त पंक्षी सा किरदार था मेरा
जो अब वक़्त के पन्नों में,कहीं दबा सा प्रतीत होता है
कई दफ़ा सोचती हूँ,फिर से खोलू उन बंद पन्नों को
जिसने समेट रखा है, अपने आगोश में बीते ख़ास पलों को
धुंधली सी यादें बस साथ हैँ, बाकी तो अपने आप में ख़ास हैँ 
कोहरे की धुंधलाहट चारों ओंर है, परत दर परत जो जम सा गया है
 बेवक्त के  शोर में, समय मुझसे दूर कहीं निकल रहा है
ना लौट आने वाले इस वक्त को, खींच कर साथ लाना है
रखना है इसे सहेज़ कर, क्यूंकि सहेज़ रखा है इसने मेरे बीते पलों को
अनमोल हैँ ये, और इससे कहीं अधिक अनमोल है मेरी शख्सियत
जिसे जिया था कभी मैंने, अपने आप में
उसे ही देख देख कर जीऊंगी अपने इस आज को
पर जीने से पहले हर बार, बैठूंगी कहीं शांत,एकांत में
शांत रहकर एकांत में, ब्राह्मण्ड की ऊर्जा को समेटूंगी अपने आप में
कुछ गुफ़्तगू होगी, कुछ नोक झोंक होंगी,दिल की दिमाग़ से
अंत में ,गहरी लम्बी सांस लेकर
 चल पड़ूँगी एक नई ऊर्जा और आत्मविश्वास से 
ख़ुद की बनाई नई दिशा की ओंर...

©Rina

#intezar

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#कविता #kinaara  सरलता से जटिल बनो....
सरलता एक आधार है, जटिलता का
इसे खुले दिल से स्वीकार करो
झांको तो अपने अंदर एक बार 
क्या छुट गया है, उसे अहसास करो
पूर्ण होने के लिए, अपूर्ण तो होना ही है
इस बात पर कोई शंका न रखो 
जटिलता कोई उलझन नहीं
ये तो सरलता का ही पुंज है
इस पुंज के ही संघठन से
निर्मित जटिलता को आत्मसात करो
सरल का दरकना है आसान
पर जटिलता को चटकाना नहीं सुसाध्य
मन की विकटता, देह से है पुख्ता
नाउम्मीद, निराश न हो, धीर रख मजबूत बनो
सरल बनकर, जटिलता से हर विकृति को दुरुस्त करो
मन की गति इख़्तियार कर
न्यायसंगत,प्रकृति के नियमों को अंगीकार करो.....

©Rina

#kinaara

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"मंद मंद मुस्कुराता असुर " दूर बैठा देख रहा वो चले गए अपने चालों को, चालाकी के कर्म से अपने जब जीत गया वो वारों में द्वेष के फेंके पासे ने दिखा दिये अपनी चाल प्यादों के टकराव से मचल उठा उसका अंतर्मन चेहरे पर कई चेहरे छुपाकर परबुद्धि मानुष को ढाल बनाकर किया पीठ पर वार वो भी बिन बरछी, बिन बाण बैठ के किसी कोने पर धृतराष्ट्र सा अंधा असुर अपने छल से जीते चाल पर कपटी सी मुस्कान लिए मंद मंद मुस्कुराता है हाँ पर वो शायद भूल चूका है ईश्वर के बनाये कर्म चक्र को जो लौट के ख़ुद पर आएगा ख़ुद के खोदे गड्ढे में जब ख़ुद एक दिन गिर जायेगा तब कर्म हँसेगा तुझ पर बन्दे और देख तुझे भी मंद मंद मुस्कुरायेगा...... ©Rina

#कविता #desert  "मंद मंद मुस्कुराता असुर "
दूर बैठा देख रहा वो
 चले गए अपने चालों को,
चालाकी के कर्म से अपने
जब जीत गया वो वारों में
द्वेष के फेंके पासे ने
दिखा दिये अपनी चाल
प्यादों के टकराव से
मचल उठा उसका अंतर्मन 
चेहरे पर कई चेहरे छुपाकर
परबुद्धि मानुष को ढाल बनाकर
किया पीठ पर वार
वो भी बिन बरछी, बिन बाण
बैठ के किसी कोने पर
धृतराष्ट्र सा अंधा असुर
अपने छल से जीते चाल पर
कपटी सी मुस्कान लिए 
मंद मंद मुस्कुराता है
हाँ पर वो शायद भूल चूका है
ईश्वर के बनाये कर्म चक्र को
जो लौट के ख़ुद पर आएगा
ख़ुद के खोदे गड्ढे में जब 
ख़ुद एक दिन गिर जायेगा
तब कर्म हँसेगा तुझ पर बन्दे
और देख तुझे भी मंद मंद मुस्कुरायेगा......

©Rina

#desert

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