कड़वी सी लगने लगी हूँ अब मैं....
अब रही न वैसी मैं ,जैसा लोगो ने देखा था
एक समय था वो, जो शायद मेरा अपना ही था
छुई मुई,अधरों पर मिठास लिए,कोमलांगी सी
ऐसा मैं नहीं कहती हूँ ,अपनों ने कहा था मुझसे
फिर अब ऐसा क्या हुआ, जो चुभने लगी हूँ मैं
चटक मिर्च सा तेज़ है मेरे हर एक शब्द में
जुबां से निकलकर, कानों मे जब ये पड़ते हैँ
तब शब्दों के कम्पन से, ह्रदय डोल सा जाता है
ऐसा मैं नहीं कहती हूँ, अपनों ने राग अलापा है
मेरी तेज़ जुबां अब शायद, दिल पर जख्म सा करते हैँ
पर ये विचार नहीं करते हैँ लोग , क्यों ऐसी हो गई हूँ मैं
मेरे इस बदलाव मे, लोगो का बड़ा हाथ हैँ
मासूमियत को मेरी, कमजोरी समझा लोगो ने
धैर्य और शांतपन का, ख़ूब उपहास उड़ाया है
देखा है मैंने वक्त वक्त पर लोगों को बदलते
तब जाकर बदला मैंने भी, अपने हर एक शब्द का लहज़ा
इसलिए तो मैं ,कड़वी सी लगने लगी हूँ अब....
©Rina
#autumn