किसी शाम जब तुम डूबते हुए सूरज को
बेहद गौर से देखोगे,
उसमें देखूंगी मैं तुम्हें
तुमसे बेहद दूर जाते हुए
यकीन मानो तुम रोक नहीं पाओगे मुझे!
ठीक उसी तरह जिस तरह तुमने खूबसूरत शाम, डूबता सूरज को रोकना चाहा
मगर असफल रहे!!
अगली भोर,
मैं फिर आऊंगी तुम्हारे जीवन में
यकीनन तुम्हारी नजर फिर टकराएगी से
और तुम दिन भर
व्यस्त रहोगे अपनी दुनिया में
और मैं जलती रहूंगी तुम्हारी प्रतीक्षा में
और फिर जब तुम शाम को थके हारे आओगे मुझे थामने,
मेरी प्रतीक्षा और धैर्य का बांध टूट गया होगा!
और तुम में इतनी सामर्थ्य ना बची होगी कि तुम मुझे रोक सको
और एक बार फिर असफलता ही तुम्हारे हाथ लगेगी!!
बेशक यह प्रक्रिया हर दिन चलेगी
मेरे हिस्से प्रतीक्षा,
और तुम्हारे हिस्से असफलता!
हमारे भाग्य का ऐसा सच है
जैसे सूर्योदय और सूर्यास्त!!
- katha
©Katha(कथा )
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