katha(कथा)

katha(कथा)

जेकरा लागी जोगी मुनि, 🙇‍♀️जप तप कईले,🌺 से मोरा मिथिला में 🛕पाहुन बन के अईले🏵🤲👣🤲 जय मिथिला🌺 जय मैथिली🌿 हम छी, धीया मिथिला क🙇‍♀️🙏 माता सिया के नगरी मिथिला स🍁 katha_ek_rahasy I'm - बेबाक बाला 😌धृष्टमुक्तकंठगुस्ताखसर्पिष🕊

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White क्या कहा....??? वह नहीं मिलेगा तो मरना चाहोगे? किसी की चाहत में जीना छोड़ दोगे? सुनो, hey you तुम उसे छोड़ दो! ©katha(कथा )

#sad_shayari #Quotes  White क्या कहा....??? 

वह नहीं मिलेगा तो मरना चाहोगे?
किसी की चाहत में जीना छोड़ दोगे? 

सुनो, hey you 
तुम उसे छोड़ दो!

©katha(कथा )

#sad_shayari

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©katha(कथा )

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#SAD  ..................................................

©katha(कथा )

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मुझ से अपनी ही दुर्दशा नहीं देखी जा रही है और इस दुनियावालो को तो देखो निगाहें ग़राए बैठे हैं  हमारे ऊपर , जब टूट कर बिखरे  तो हमारे टुकड़े गिनने को!! ©katha(कथा )

#Parchhai #SAD  मुझ से अपनी ही दुर्दशा नहीं देखी जा रही है

और 
इस दुनियावालो को तो देखो 
निगाहें ग़राए बैठे हैं  
हमारे ऊपर ,
जब टूट कर बिखरे  
तो 
हमारे टुकड़े गिनने को!!

©katha(कथा )

#Parchhai @Pyare ji Dr.Meet (मीत) "सीमा"अमन सिंह Prince "अल्फ़ाज़" @Krishna

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आग में जले इतने हैं कि हर रोज अब जख्म गहरे ही होते जा रहे हैं ये आग की लपटे कम होने का नाम ही नहीं ले रही और तमाशा तो देखो हमें आग में जलता देख , उस आग में हाथ सेकने वालों की कतार हर दिन लंबी ही होती जा रही है मैं पुछती हूं कि पूरे शहर का का पानी सूरज में सोख लिया है या चांद ने अपनी शीतलता को बनाए रखने के लिए उधार पे लिया है ? मेरी आँखें अब भी रश्तो पर ही टिकी हैं मेरे अपने अब तक भी क्यों नहीं आये  धरती से मांग कर , बादल से छीन कर  मेरे पास, मेरे पास पानी लेकर !! ©katha(कथा )

#DiyaSalaai #SAD  आग में जले इतने हैं 
कि हर रोज अब जख्म
 गहरे ही होते जा रहे हैं 
ये आग की लपटे कम होने का नाम ही नहीं ले रही 
और तमाशा तो देखो
हमें आग में जलता देख , उस आग
 में हाथ सेकने वालों की 
कतार हर दिन लंबी ही होती जा रही है 
मैं पुछती हूं 
कि पूरे शहर का का पानी 
सूरज में सोख लिया है
या चांद ने अपनी शीतलता को बनाए 
रखने के लिए उधार पे लिया है ? 

मेरी आँखें अब भी रश्तो पर ही टिकी हैं 
मेरे अपने अब तक भी क्यों नहीं आये  
धरती से मांग कर , बादल से छीन कर  
मेरे पास, मेरे पास पानी लेकर !!

©katha(कथा )

#DiyaSalaai Δ¥ΔŦ @shraddha singh @Priya singh @Gautam Dr.Meet (मीत)

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Unsplash ये तुम क्या करती हो ? क्यों करती हो ? सबका ही दिल जितना होता है तुम्हें और तुम्हारे दिल का क्या ? जो तुम्हारी जज़्बाती होकर  लिए गए फ़ैसलो से है हर बार दुखता ये कौन सी दुनिया है तुम्हारी  जो तुमने मन ही मन मे बना लिया ये किसके पीछे भाग रही हो तुम ? और रेस में खुद को ही कहा हो छोड़ आई ? पत्थर की बनती तो जा रही हो पहाड़ों से लड़ते-लड़ते और यह हाथ दिखाना अपना जरा यह कौन सा पत्थर छुपा रखा है तुमने अपने हाथों में जिससे समय-समय पर तुम खुद को ही कुचलती रहती हो ठहरो , मेजेज़ एक सवाल का जवाब दो तुम्हें खुद पर क्या दया नहीं आती कब सीखोगी, खुद से बेहद प्यार करना कब सीखोगी लड़कर जितना अपने आप से कब सीखोगी अपनी कीमती आंसुओं को व्यर्थ ना बहाना सारे  फैसला दिल से लेती हो दिमाग क्या भेज खाई है सारी दुनिया के लिए जीती रहो तुम बस तुम्हारी अपनी आत्मा ही तुम्हारे लिए पराई है अरे कुल्हाड़ी पर जाकर पर मार आती हो कहावत भी कुछ और है पैर पर कुल्हाड़ी मारना बुद्धि कहीं रखकर भूल आई हो क्या थोड़ा तो डरो उस परमात्मा से जिन्होंने तुम्हें इतना सजाया हैं संवारा है तुम्हारे भाग्य को लिखा है तुम्हारे कर्मों को लिखा है ऊपर वाले लेखक ने थोड़ा स्वाभिमानी बनो खैर , समझ से तुम्हें आना नहीं है अगर समझ आता तो यह लिखने के बाद शायद तुम्हारा मन शांत होता मगर तुम अशांत लड़की वक्त रहते कहां कुछ सीखने वाली हो! ©katha(कथा )

#library #SAD  Unsplash ये तुम क्या करती हो ? क्यों करती हो ?
सबका ही दिल जितना होता है तुम्हें और तुम्हारे दिल का क्या ?
जो तुम्हारी जज़्बाती होकर  लिए गए फ़ैसलो से है 
हर बार दुखता 

ये कौन सी दुनिया है तुम्हारी  जो तुमने मन ही मन मे बना लिया 

ये किसके पीछे भाग रही हो तुम ? और रेस में खुद को ही कहा हो छोड़ आई ? 

पत्थर की बनती तो जा रही हो 
पहाड़ों से लड़ते-लड़ते 

और यह हाथ दिखाना अपना जरा 
यह कौन सा पत्थर छुपा रखा है तुमने अपने हाथों में जिससे समय-समय पर तुम 
खुद को ही कुचलती रहती हो 

ठहरो ,
मेजेज़ एक सवाल का जवाब दो
तुम्हें खुद पर क्या दया नहीं आती कब सीखोगी, 
खुद से बेहद प्यार करना 

कब सीखोगी लड़कर जितना अपने आप से
कब सीखोगी अपनी कीमती आंसुओं को व्यर्थ ना बहाना
सारे  फैसला दिल से लेती हो दिमाग क्या भेज खाई है
सारी दुनिया के लिए जीती रहो तुम 
बस तुम्हारी अपनी आत्मा ही तुम्हारे लिए पराई है
अरे कुल्हाड़ी पर जाकर पर मार आती हो कहावत भी कुछ और है पैर पर कुल्हाड़ी मारना
बुद्धि कहीं रखकर भूल आई हो क्या
थोड़ा तो डरो उस परमात्मा से जिन्होंने तुम्हें इतना सजाया हैं संवारा है 
तुम्हारे भाग्य को लिखा है तुम्हारे कर्मों को लिखा है ऊपर वाले लेखक ने 
थोड़ा स्वाभिमानी बनो
खैर , समझ से तुम्हें आना नहीं है अगर समझ आता तो यह लिखने के बाद शायद तुम्हारा मन शांत होता मगर तुम अशांत लड़की
वक्त रहते कहां कुछ सीखने वाली हो!

©katha(कथा )

#library 10 Dec Time-17:44

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