यह कैसा सफर था ? मैं लाश बन गई थी और जला दिया था | हिंदी Life

"यह कैसा सफर था ? मैं लाश बन गई थी और जला दिया था मुझे मेरे अपनों ने मैं जलकर भी राख बन गई मगर , महादेव ने उस राख को स्पर्श किया और मैं फिर से जी के उठी! ©katha(कथा)"

 यह कैसा सफर था ?
मैं लाश बन गई थी 
और जला दिया था मुझे मेरे अपनों ने 
मैं जलकर भी राख बन गई 
मगर , महादेव ने उस राख को स्पर्श किया 
और मैं फिर से जी के उठी!

©katha(कथा)

यह कैसा सफर था ? मैं लाश बन गई थी और जला दिया था मुझे मेरे अपनों ने मैं जलकर भी राख बन गई मगर , महादेव ने उस राख को स्पर्श किया और मैं फिर से जी के उठी! ©katha(कथा)

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