मीरा , ने ओढ़ ली प्रीत की
एक बार फिर से चुनर
एक प्रेमीका ने फिर से चुन लिया
स्वयं ,
प्रेम में दीवानी हो जाना !
मगर इस बार मीरा ने,
टूट कर बिखरना
और दर-दर भटकना नहीं चुना
उसने चुना है सशक्त होना
बिखरने के बाद ही आप ही जुड़ जाना
क्योंकि मीरा प्रेम से बिछड़ी नहीं है
उसने अपने हिस्से का प्रेम किया है
तो , अब मीरा श्रृंगार भी नहीं छोड़ेगी
क्योंकि उसने अपने सुरमे में
श्याम को पा लिया है!
Katha_ek_rahasy
©katha(कथा)