White अनंत में स्वयं की खोज थोड़ी मुश्किल मालूम पड़ती है।
जब अनंत तुम्हारे भीतर भी है तो उसे बाहर क्यों तलाशना।
लघु छुप जाता है और बृहत दृश्य है।
जो दृश्य है उसके पीछे क्यों जाना,ये कैसा अध्यन है।
बड़ा काम तो तब हो जो लघु को ढूंढ सको।
भूसे में ढेर में सुई ढूंढना है आध्यात्म न की पसरी हुई जमीन पे भूसे का ढेर ढूंढना।
केंद्रित हो और ढूंढो,समझो।जो समझ गए तो समझो मिल गया।
वही आनंद वही संतोष जो प्रेम में प्रेयसी के गले लगने पर मिलता है ,
तुम्हें तुम्हारे अंदर मिल जायेगा।
वास्तविक चिरायु प्रेम।
जिस से तुम्हारी उत्पति और अंत का दोनो सिरा जुड़ा हुआ है।
फिर तो दुनियावी प्रेमी तुम्हें बस हमसफर लगने लगेंगे।
प्रेम रह जायेगा भोग मर जायेगा।
क्योंकि यह जन्म ही भोग है।इसके अलावा तो हमने मन को भ्रमित कर रखा है।
भ्रम में न रहो।
आसक्ति से दूर प्रेम करो।इसमें कोई बाधा नहीं है।
परमेश्वर तुमसे यह कभी नहीं पूछेगा कि प्रेम क्यों किया।
यह जरूर पूछ सकता है कि क्यों नहीं किया।
स्वयं से इतनी घृणा में जीते रहे है ,न किसी को प्रेम दे सके ना किसी का प्रेम पा सके।
न ही भीतर कुछ जगा हुआ है,न बाहर कुछ जागृत है।
अंधेरे में हाथी टटोल के पहचानते हुए तुम में से
जिसे हाथ जो लगा उसने वैसा ही बताया हाथी को।
जिसने कान पकड़ा,जिसने पैर ,जिसने पूछ ,
सबने अपने हिसाब से अलग अलग व्याख्या कर दी।
व्याख्या का शौक इस कदर हावी है की नशा हो रहा है।
आंख मूंद कर तीर चलाए जा रहे है।
उठो जागो और हाथी देखो।
तुम फिर आनंद में डूब जाओगे और अपनी बचकानी व्याख्याओं पे मुस्कुराओ।
राधे राधे
©निर्भय चौहान
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