White किसी करार का भी जिक्र नहीं है निसाब में क्या | हिंदी शायरी

"White किसी करार का भी जिक्र नहीं है निसाब में क्या खुशी नहीं है ज़िंदगी तुम्हारी किताब में कौन सी सूरत है जो दिखलाई जाएगी भला दुख दर्द के अलावे नहीं, कुछ भी हिजाब में सूखा पड़ा कछार सा मन पसरी पड़ी है रेत ये कौन सा म॔ज़र हम देखा किए हैं ख्वाब में है खुशबू ए चमन नहीं, है रौनके बहार कहाँ थकन सी आ गई है, ख़्वाहिशों के शबाब में कुछ नहीं अपना, सब तेरी इनायत तो फिर जो चाहे वो चढ़ा देना कर्ज हमारे हिसाब में तुम्हारी हुकूमत के हैं हम रियाया नहीं कोई बातें न किया कर कभी यूँ, हमसे रुआब में बेहद जब हो जाएंगे फिर जुनून की हद क्या दरिया भी निकाल लाएंगे एक रोज सराब में ©Lalit Saxena"

 White किसी करार का भी जिक्र नहीं है निसाब में
क्या खुशी नहीं है ज़िंदगी तुम्हारी किताब में 

कौन सी सूरत है जो दिखलाई जाएगी भला
दुख दर्द के अलावे नहीं, कुछ भी हिजाब में 

सूखा पड़ा कछार सा मन  पसरी पड़ी है रेत
ये कौन सा म॔ज़र हम देखा किए हैं ख्वाब में 

है खुशबू ए चमन नहीं, है रौनके बहार कहाँ
थकन सी आ गई है, ख़्वाहिशों के शबाब में 

कुछ नहीं अपना, सब तेरी इनायत तो फिर
जो चाहे वो चढ़ा देना कर्ज हमारे हिसाब में 

तुम्हारी हुकूमत के हैं हम रियाया नहीं कोई 
बातें न किया कर कभी यूँ,  हमसे रुआब में 

बेहद जब हो जाएंगे फिर जुनून की हद क्या
दरिया भी निकाल लाएंगे एक रोज सराब में

©Lalit Saxena

White किसी करार का भी जिक्र नहीं है निसाब में क्या खुशी नहीं है ज़िंदगी तुम्हारी किताब में कौन सी सूरत है जो दिखलाई जाएगी भला दुख दर्द के अलावे नहीं, कुछ भी हिजाब में सूखा पड़ा कछार सा मन पसरी पड़ी है रेत ये कौन सा म॔ज़र हम देखा किए हैं ख्वाब में है खुशबू ए चमन नहीं, है रौनके बहार कहाँ थकन सी आ गई है, ख़्वाहिशों के शबाब में कुछ नहीं अपना, सब तेरी इनायत तो फिर जो चाहे वो चढ़ा देना कर्ज हमारे हिसाब में तुम्हारी हुकूमत के हैं हम रियाया नहीं कोई बातें न किया कर कभी यूँ, हमसे रुआब में बेहद जब हो जाएंगे फिर जुनून की हद क्या दरिया भी निकाल लाएंगे एक रोज सराब में ©Lalit Saxena

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