"ये ज़िंदगी है पल दो पल मत सोच तू क्या होगा कल।
बस आज को जी भर के जी तू छोड़ दे कल की फ़िकर।।
जिसको ना देखा किसी ने जो कल कभी आया नहीं।
उसकी चिंता क्यूं करें कैसा भला उस कल का डर।।
पर दुनिया उलझ कर रह गई है कल के मायाजाल में।
बस ख़्वाब में सब जी रहे हैं हक़ीक़त को भूल कर।।
कल की फ़िकर में दुनिया वाले इस क़दर बेजार हैं।
भागे जा रहे हैं कल के पीछे आज को अपने छोड़ कर।।
है बस आज में ही ज़िंदगी आगाज़ से अंज़ाम तक।
फिर भी सारे कर रहे हैं जानें क्यूं कल की फ़िकर।।
अपनी अलग तू राह चुन इस दुनिया से हो के जुदा।
मंज़िल तो मिल ही जाएगी तुझे राह के किसी मोड़ पर।।
तेरा साथ कोई दे या ना दे चलना तेरा काम है।
ऐ दिल मेरे यूं ही चलाचल बस तू अपनी राह पर।।
ये ज़िंदगी................कल की फ़िकर।।
©अभिलाष द्विवेदी (अकेला ) एक अनपढ़ शायर
"