कवि संतोष बड़कुर जी
***हृदय की गहराई***
इस शरीर की आत्मा ने गहराई की बताया था,
इस जहां में ,
कोई उस गहराई को जानने को ही नहीं चाहता,
इस लिए धीरे -धीरे संसार समुद्र की गहराई को
दिखाने की कोशिश कर रहा हूं ।
हमारे शरीर में ही इस ब्रह्माण्ड का सबसे बड़ा समुद्र है।
हे इन्सान आप ही इसमें डुबने से डरते हो ।
जिसको हर पल साथ लिए चलते हो।
इस बाहर वाले संसार समुद्र में नहाकर बड़े खुश,
होते हो ,हो रहे हो,
ये बाहर वाला भौतिक समुद्र
आपके ह्रदय के समुद्र के एक अंश मात्र है।
ऐसा मेरा हृदय से विश्वास है।
Waaah शानदार पोस्ट 👌 👌 👌 👌 👌