White कुछ सपने अधूरे जल रहें होंगे,
कुछ सपोले अभी पल रहे होंगे।
दुश्वारियाँ दरख्तों सी बढ़ रहीं हैं,
शायद मेरे ही कर्मफल रहे होंगे।
बच कर निकल आये हैं जलजलों से,
दुश्मन हथेलियाँ मल रहे होंगे।
साथ जब तक रहे जीभर रहे,
कितने ख़ुशनुमा वो पल रहे होंगे।
कोई और आ गया है जिंदगी में उनकी,
शायद अब उसको छल रहे होंगे।
ऊपर से बहुत प्यारा है फल,
अंदर कीड़े पल रहे होंगे।
ज़िंदगी की क़िताब पढ़ा दी उन्हें,
कमजोरियाँ मिरी उगल रहे होंगे।
ज़वाब उनसे क्या मैं चाहूँ,
जो गुस्से में अब भी उबल रहे होंगे।
✍️शैलेन्द्र राजपूत
©HINDI SAHITYA SAGAR
Aaa itna Dard sahi kaha कोई तो डोर है जो बांधे हुए है तुझसे। वरना तेरे जैसे यहां चेहरे हजार मिलते है। हरबार गलती बता देते है कांटो की। दरअसल फूलों के ही बेवफाई के किरदार मिलते है। साहब लगे रह जाते है कांटे डाल पर। बस यहां फूलों के ही खरीददार मिलते है। लेकर बेवफाई का नाम जी रहे है कांटे चलो कांटो की एक बेवफाई बता दो फूलों की हिफाजत में अहम रोल है इनका वफ़ा ना सही इनके नाम से बेवफा शब्द मिटा दो