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किसलिए मैं कहूँ अँधेरा है
एक जुगनू जो दोस्त मेरा है
जो पूछे कि है ये किसका दिल
मैं कहूँ यार सिर्फ़ तेरा है
गोपियाँ आईं हैं शिक़ायत को
कृष्ण ने लूटा फिर महेरा है
दिन से कैसे भला मैं इश्क़ करूँ
चाँद का मेरे ये लुटेरा है
वक़्त ने आज फिर तसल्ली से
आपकी याद को उकेरा है
याद जिन रास्तों से आएगी
दर्द हमने वहीं बिखेरा है
बस वही आँखें ख़ूबसूरत हैं
जिनमें इक ख़्वाब का बसेरा है
©Ghumnam Gautam
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