"एहसास मेरे मृतप्रायः हो चुकी है,
इस कलम की स्याही सुख चुकी है।
ख्याल से मैं बेख्याल हो चुका हूं,
क्या लिखूं मुझे कुछ सूझता नहीं है।
ना ख्वाब है अब ना कोई ख्वाहिश,
रातों की नींद जाने कहां खो चुकी है।
तन्हा रातों में बैचेन तारे गिनता हूं,
कविताएं मुझसे मुंह मोड़ चुकी है ।।
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©एक अजनबी
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