इक जमाना हो गया तुमसे मिले,।
हमें इस जमाने में तुम से मिले ।
मिरा राज़ - दाँ पूछता है मुझसे ,।
हम क्यों, कहां, कब, कैसे मिले ।
छुपाए थे जिसने खुद से कभी,।
आख़री ख़त हमें सिरहाने मिले ।
हर दुआ बे-असर लगने लगी , ।
शहनाइयों के जब लिफ़ाफे मिले ।
कैसे बताऊं सब पूछते हैं लोग,।
जो ज़ख़्म तेरी निशानी से मिले ।
फ़साना-ए-ग़म सुनाती है दीवार,।
चिराग़ों मैं जलते परवाने मिले ।
जो चाहते न थे उन्हें चाहत मिली,।
हमको उस चाहत से शिकवे मिले ।
हमें इब्तिदा-ए-इश्क़ के सफ़र में,।
ऐ ग़म-गुसार ये ख़ार तिरे मिले ।
अंजाम-ए-मोहब्बत बताऊं कैसे, ।
ग़म-ए-हयात सारे के सारे मिले, ।
उससे बिछड़ कर हैरां हो क्यूं, ।
उसको भी इश्क में फ़तवे मिले ।
©Darshan Raj
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Bahut sundar shandar srijan wahhh ji 👌 👌 👌 👏 👏 👏