जज़्बातों को समेट कर ज़िन्दगी को आगे बढ़ाती रही जो मि | हिंदी അഭിപ്രായവും

"जज़्बातों को समेट कर ज़िन्दगी को आगे बढ़ाती रही जो मिला उसे बिना शिकायत के स्वीकारती रही ना शिकवा था , ना गिला था किसी से मगर तुम्हें पाने की चाहत को मन ही मन दबाती रही सालों बीतते गये और सफर आगे बढ़ता रहा तुम्हें पाने का ख्वाब फिर अधूरा सा होता रहा सोचा कि जीवन बिताना होगा तुम्हारे बिना बेबसी और लाचारी से कदम आगे बढ़ता रहा रुख हवा का इक दिन ऐसे बदला जो न सोचा कभी वो भी पुरा हुआ बरसों के इंतजार के बाद वो पल भी आया प्रियन के मिलन का खूबसूरत संगम भी आया... ©Priya Singh"

 जज़्बातों को समेट कर ज़िन्दगी को आगे बढ़ाती रही
जो मिला उसे बिना शिकायत के स्वीकारती रही
ना शिकवा था  , ना गिला था किसी से मगर
 तुम्हें पाने की चाहत को  मन ही मन दबाती रही

सालों बीतते गये और  सफर आगे बढ़ता रहा
तुम्हें पाने का ख्वाब फिर अधूरा सा होता रहा
सोचा कि जीवन बिताना होगा तुम्हारे बिना
बेबसी और लाचारी से कदम आगे बढ़ता रहा

रुख हवा का इक दिन ऐसे बदला
जो न सोचा कभी वो भी पुरा हुआ
बरसों के इंतजार के बाद वो पल भी आया
प्रियन के मिलन का खूबसूरत संगम भी आया...

©Priya Singh

जज़्बातों को समेट कर ज़िन्दगी को आगे बढ़ाती रही जो मिला उसे बिना शिकायत के स्वीकारती रही ना शिकवा था , ना गिला था किसी से मगर तुम्हें पाने की चाहत को मन ही मन दबाती रही सालों बीतते गये और सफर आगे बढ़ता रहा तुम्हें पाने का ख्वाब फिर अधूरा सा होता रहा सोचा कि जीवन बिताना होगा तुम्हारे बिना बेबसी और लाचारी से कदम आगे बढ़ता रहा रुख हवा का इक दिन ऐसे बदला जो न सोचा कभी वो भी पुरा हुआ बरसों के इंतजार के बाद वो पल भी आया प्रियन के मिलन का खूबसूरत संगम भी आया... ©Priya Singh

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