रिश्तों की चाहत क्या होती है,
और क्या होता है बंधन।
नेत्र मेरे भर-भर आते,
हृदय करता करुण क्रंदन।
कुछ गुथा हुआ सा रहस्य है,
होता रहता है मंथन।
पूछती हूँ मैं नित ईश्वर से,
क़रतीं हूँ उनका ही वंदन।
मेरे दाता!मुझको आकर समझा जाओ,
अवतरित हो जाओ पृथ्वी पे,समर्पित करूँगी चंदन।
संसार की भीड़ में रिश्तों को खोज रही हूं,
रिश्ते आकर समझा जाओ या लौटा दो मेरा वो बचपन।
©Richa Dhar
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