रोज- रोज खुद से लड़ते हैं
खुद के दिमाग में चल रहे सवालों के उलझनों से लड़ते हैं,
रोज खुद को समझाते हैं ,
रोज ही खुद को शान्त रखने की कोशिश करते हैं,
पर गुस्सा, चिड़चिड़ापन हैं कि बड़ता ही जा रहा हैं,
सोचते हैं कि अब से किसी की बातों को दिल से नहीं लगायेंगे,
बुरा नहीं मानेंगे, पर
हर किसी को हम ही क्यों समझते हैं,
कोई ,कभी हमें भी तो समझे,
हमारी जगह खुद को रख कर देखे,
कि कितनी तकलीफ होती हैं,
कड़वे बोल से, किसी का मजाक उड़ाने से।
10/11/24
4:32 p. m.
(U. K.)
©Ubaida khatoon Siddiqui
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