आख़िर क्यूँ??
क्या घबरा गये थे तुम,
क्या डर गए थे तुम।
क्या नहीं देखा? तुमने,
रास्ते में मेहनत करती चीटीं को।
क्या नहीं देखा? तुमने,
दीवाल पर चढती बार-बार,
फिसलती मकड़ी को।
क्या नहीं देखा? तुमने,
चलने की कोशिश करते उस बच्चे को,
हर बार गिर कर भी जो फिर कोशिश,
करता है वो चलने की।
क्या नहीं देखा? तुमने,
रास्ते में किसी पेड़ को,
कितने छोटे बीज से,
हो जाते है वो कितने बड़े।
क्या नहीं सीखा ? तुमने,
कुछ इस पृथ्वी से।
क्या नहीं सीखा? तुमने,
एसकुछ इस विशाल आसमान से।
क्या नहीं मिली तुम्हें,
कोई सीख पंछी के छोटे बच्चे से,
क्या नहीं मिली तुम्हें,
कोई सीख इन नदियों,
पहाड, और विशाल चट्टानो से।
आधे रास्ते से लौट आए तुम,
आख़िर क्यूँ??
क्या घबरा गये थे तुम,
क्या डर गए थे तुम।
©Aakansha shukla
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