कुछ एसा रहा उसका दिल्लगी कर के जाना,
जैसे बस था कुछ पल के लिए घर था किराए पर उठाना!
कसौटियों पर रख दिए सारे बंधन,
पूछे सोनू से जरा निभा के दिखाना!
और उसके इश्क़ की इन्तेहा तो देखो,
कर आया सौदा उस सौदागर से,
शर्त थी कभी पलट के ना आना।
आज भी याद है.....वो कोहरे की रात मे उसके अधरों से निकले अल्फाज़ों का बिखर जाना,
आज के बाद कभी मुझे छोड़ने ना आना।
"हाँ बहुत मुश्किल नही है,
पहले और आखिरी इश्क़" को भूला पाना।
©अभिषेक मिश्रा "अभि"
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