White गजल
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जिंदगी मुकम्मल ना हुई कुछ अधूरा ही रहा,
सिलसिला सबके दरमियां कुछ यूँ ही रहा।
खत्म खेल तमाशे बचपन के छूट गए,
पत्थरों से बना घर अधूरा ही रहा।
तमाम शिकायतें लफ्जों में बयाँ
हुई,
दौर कमियाँ निकालने का जारी ही रहा।
कब किस बात पर रोये,कब चेहरे पर हँसी रही,
वह लम्हाँ बस एक लम्हाँ ही रहा।
बेफिक्री सी जिंदगी जो कभी हुआ करती थी कभी,
इस उम्र तक आते-आते वह सिर्फ ख्वाब ही रहा।
रफ्तार भरी जिंदगी की बस आगे बढ़ती रही,
अपने तय सफर पर हर आदमी उतरता ही रहा।
एशो- आराम की जद्दोजहद में थककर चूर हुआ,
हर इंसान का सफर कुछ इस तरह अधूरा ही रहा।
जिम्मेदारियों की उलझन में खुद को खो दिया,
तलाशे सुकून का वह कोना "सपना" ही रहा।
सपना परिहार ✍🏻
©Sapna Parihar
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