White आज कल ये नींद क्यूँ सता रही है,
मानती नहीं अपना, पूरी रात जगा रही है।
आँखों ने पलकों से ख़फ़ा होकर कहा,
"अब सपनों की राहें भी हमें नहीं भा रही हैं।"
चाँदनी भी जैसे तन्हा लगती है,
हवा भी कोई शिकवा सुना रही है।
दिल की बेचैनियों का सबब क्या कहूँ,
यादें हैं कि हर रात रुला रही हैं।
कभी करवटों में सुलझता नहीं,
कभी ख्वाबों में उलझा जाता हूँ।
सोचता हूँ शायद ये रात गुज़र जाए,
मगर हर सहर में खुद को वहीँ पाता हूँ।
धड़कनों की ताल भी धीमी सी लगती है,
जैसे कोई दास्तां अधूरी सुना रही है।
तकिए पे गिरते हैं खामोश आँसू,
जिनकी गूँज रातभर मुझे जगा रही है।
सुबह की रोशनी भी अजनबी लगती है,
जैसे कोई याद फिर से बुला रही है।
हर रात एक नया किस्सा कह जाती है,
और हर सुबह फिर वही कहानी दोहरा रही है।
ख़ामोश लफ्ज़ों में सिसकती है रात,
जैसे कोई भूला हुआ नग़्मा हो साथ।
नींद आँखों से मानो रूठी हुई,
तेरी बातों की चादर बिछा रही है।
कभी सोचता हूँ कि भूल जाऊँ तुझे,
पर ये दिल भी कहाँ मेरी सुनता है।
तेरी हर याद इक साज़ सा बजता है,
और मैं हर धुन में खुद को ढूँढता हूँ।
क्यों ये रातें सवाल बन जाती हैं,
क्यों तन्हाई ही जवाब बन जाती है?
कब तक जिऊँ इस अधूरी तलाश में,
जहाँ हर सुबह फिर वही शाम लाती है?
©theABHAYSINGH_BIPIN
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