अंबिका अनंत अंबुज

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White लोगों के ताने अब बड़े मनमाने हुए जमाने में अब बस  अपने काम से काम  रखने लगा हूँ कुछ जलन से  जलने  लगे हैं  अपने  मुझ से बुझाने को जुबां पर बस प्रणाम रखने लगा हूँ मेरे बेबाक  से अंदाज पर  उन्हें शिकायत थी खुश रखने को जुबां पर लगाम रखने लगा हूँ भरोसा  टूटा  है  सही की  राह  चलते चलते अब झूठ पर भी कुछ एहतराम  रखने लगा हूँ जिंदगी बीत गई बहुत बेमतलब की अब तक रब से सामना कैसा होगा अनुमान रखने लगा हूँ इंसानियत रौंद कर  कंकड़  पत्थर  बटोरे मैने अब जहां से रुखशती का सामान रखने लगा हूँ जमीर  बिक  रहे  बाजार  में  खड़ा हूँ अंबुज अपने ईमान पर  कुछ यूं  गुमान  रखने लगा हू ©अंबिका अनंत अंबुज

#शायरी #Sad_shayri  White लोगों के ताने अब बड़े मनमाने हुए जमाने में 
अब बस  अपने काम से काम  रखने लगा हूँ

कुछ जलन से  जलने  लगे हैं  अपने  मुझ से 
बुझाने को जुबां पर बस प्रणाम रखने लगा हूँ

मेरे बेबाक  से अंदाज पर  उन्हें शिकायत थी 
खुश रखने को जुबां पर लगाम रखने लगा हूँ

भरोसा  टूटा  है  सही की  राह  चलते चलते 
अब झूठ पर भी कुछ एहतराम  रखने लगा हूँ 

जिंदगी बीत गई बहुत बेमतलब की अब तक 
रब से सामना कैसा होगा अनुमान रखने लगा हूँ 

इंसानियत रौंद कर  कंकड़  पत्थर  बटोरे मैने 
अब जहां से रुखशती का सामान रखने लगा हूँ 

जमीर  बिक  रहे  बाजार  में  खड़ा हूँ अंबुज 
अपने ईमान पर  कुछ यूं  गुमान  रखने लगा हू

©अंबिका अनंत अंबुज

#Sad_shayri

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अंबिका's Live Show

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Friday, 7 February | 11:02 pm

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White खो गए हम भीड़ में खुद से अनजाने हुए अब भला क्या बहार क्या मौसम मिले ना मिले बेबस जिम्मेदारियों से जिंदगी दो चार हुई है रात लम्बी है रह गुजर की यूं सहर मिले ना मिले खबर रख लो अपनो की खैर ख्वाह बन कर ना जाने किस घड़ी खबर फिर मिले ना मिले इस तरह छोड़ कर जाने का कसूर क्यों करते हो मरने का खयाल तन्हाई यूं में जहर मिले ना मिले सलीके की जिंदगी तरीके से पता खुदका रख लो ये जेहन ये सेहन सुहाना शहर फिर मिले ना मिले दूर क्यूं हो नज़र के नजराने मयखाने से अंबुज ना जाने राहे सफर कोई नज़र यूं मिले ना मिले ©अंबिका अनंत अंबुज

#शायरी #good_night  White खो  गए  हम  भीड़  में   खुद  से  अनजाने  हुए
अब भला क्या बहार  क्या मौसम मिले ना मिले

बेबस  जिम्मेदारियों  से  जिंदगी  दो  चार  हुई है 
रात लम्बी है रह गुजर की यूं सहर मिले ना मिले

खबर रख लो  अपनो  की  खैर  ख्वाह  बन कर 
ना जाने  किस घड़ी  खबर  फिर  मिले  ना मिले

इस तरह छोड़ कर जाने का कसूर क्यों करते हो 
मरने का खयाल तन्हाई यूं में जहर मिले ना मिले

सलीके की जिंदगी तरीके से पता खुदका रख लो 
ये जेहन ये सेहन सुहाना शहर फिर मिले ना मिले 

दूर क्यूं हो  नज़र के  नजराने मयखाने से अंबुज 
ना जाने राहे सफर  कोई नज़र  यूं मिले ना मिले

©अंबिका अनंत अंबुज

#good_night

13 Love

#कविता

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#कविता #meditation

#meditation

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मेरी ख्वाहिशें मेरे दिल में दबी ही रहीं तवज्जों पर मैने बस तेरी खुशी रक्खी तुम्हारी जिंदगी उजाला बा काफी रहे लहू जला कर ईमान से दोस्ती रक्खी परवरिश तुम्हारी जिंदगी सलामत रहे बेपरवाह  बा खुद से  बे खुदी  रक्खी बाजिंदगी मुकम्मल मंजिल तुझे मिले सर झुका के दुश्मनों से दोस्ती रक्खी बड़े सवाल थे हालात भी अच्छे नहीं तेरी किताबत कोई कमी नहीं रक्खी तेरा स्वाभिमान मान सम्मान भी रहे जुड़े हाथों से  लोगों से दोस्ती रक्खी खुद की जिंदगी भले ही फांके काटी तेरी टिफिन पुष्ट नाश्ते से भरी रक्खी तेरे  हर शौक  बड़े शौक से  पूरे किए टूटे जूते बनियान अपनी फटी रक्खी ख़्वाब अरमान  अंबुज अधूरे ही रहे चिंता तुम्हारी  पर  झुठी हँसी रक्खी मुझे कभी भी एतराज ना रहा तुझसे तेरी खुशी में ही  अपनी खुशी रक्खी अंबिका अनंत अंबुज AAA (पिता का पुत्र से संवाद) ©अंबिका अनंत अंबुज

#कविता  मेरी ख्वाहिशें मेरे दिल में दबी ही रहीं 
तवज्जों पर मैने बस तेरी खुशी रक्खी

तुम्हारी जिंदगी उजाला बा काफी रहे 
लहू जला कर ईमान से दोस्ती रक्खी

परवरिश तुम्हारी जिंदगी सलामत रहे 
बेपरवाह  बा खुद से  बे खुदी  रक्खी

बाजिंदगी मुकम्मल मंजिल तुझे मिले 
सर झुका के दुश्मनों से दोस्ती रक्खी

बड़े सवाल थे हालात भी अच्छे नहीं 
तेरी किताबत कोई कमी नहीं रक्खी

तेरा स्वाभिमान मान सम्मान भी रहे 
जुड़े हाथों से  लोगों से दोस्ती रक्खी

खुद की जिंदगी भले ही फांके काटी 
तेरी टिफिन पुष्ट नाश्ते से भरी रक्खी 

तेरे  हर शौक  बड़े शौक से  पूरे किए 
टूटे जूते बनियान अपनी फटी रक्खी 

ख़्वाब अरमान  अंबुज अधूरे ही रहे 
चिंता तुम्हारी  पर  झुठी हँसी रक्खी

मुझे कभी भी एतराज ना रहा तुझसे 
तेरी खुशी में ही  अपनी खुशी रक्खी 
अंबिका अनंत अंबुज AAA 
(पिता का पुत्र से संवाद)

©अंबिका अनंत अंबुज

मेरी ख्वाहिशें मेरे दिल में दबी ही रहीं तवज्जों पर मैने बस तेरी खुशी रक्खी तुम्हारी जिंदगी उजाला बा काफी रहे लहू जला कर ईमान से दोस्ती रक्खी परवरिश तुम्हारी जिंदगी सलामत रहे बेपरवाह  बा खुद से  बे खुदी  रक्खी बाजिंदगी मुकम्मल मंजिल तुझे मिले सर झुका के दुश्मनों से दोस्ती रक्खी बड़े सवाल थे हालात भी अच्छे नहीं तेरी किताबत कोई कमी नहीं रक्खी तेरा स्वाभिमान मान सम्मान भी रहे जुड़े हाथों से  लोगों से दोस्ती रक्खी खुद की जिंदगी भले ही फांके काटी तेरी टिफिन पुष्ट नाश्ते से भरी रक्खी तेरे  हर शौक  बड़े शौक से  पूरे किए टूटे जूते बनियान अपनी फटी रक्खी ख़्वाब अरमान  अंबुज अधूरे ही रहे चिंता तुम्हारी  पर  झुठी हँसी रक्खी मुझे कभी भी एतराज ना रहा तुझसे तेरी खुशी में ही  अपनी खुशी रक्खी अंबिका अनंत अंबुज AAA (पिता का पुत्र से संवाद) ©अंबिका अनंत अंबुज

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