सिगरेट
एक अजीब सा रिश्ता है तेरे-मेरे दरमियाँ,
जब-जब साथ होती है तू, तुझसे नहीं घबराता हूँ.
जलता तुझे देख कर, सोच में पड़ जाता हूँ,
तुझे होठों से लगाते हीं, एक लगाव सा पाता हूँ.
न कोई झिझक तुझमें, न ही कोई हठ है,
प्यार से खींच लूँ अक्सर, जो भी धुएँ की काश हैं...
इस तरह साथ जो देती मेरी, तुझमें हीं खो जाता हूँ,
तेरे धुएँ को समेटकर अंदर अपने, तनावमुक्त हो जाता हूँ,
जब भी साथ होती है तू, एक सुकून सा पाता हूँ.
एक सुकून सा पाता हूँ...
©अपनी कलम से
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