ससुराल के आँगन में जब कदम रखा,
सपनों का गजरा मैंने सिर पर सजाया।
सम्मान के फूल हर पल खिलाए,
पर उनके दिल तक पहुँच न पाया।
मैंने हर रिवाज को अपनाया,
हर रिश्ते को अपना बनाया।
पर आँखों में उनकी वह बात न दिखी,
जो मुझे अपनों का एहसास कराए।
मैंने झुका सिर, दिल से किया सम्मान,
हर फरमाइश पूरी, हर काम बेनाम।
पर हर प्रयास के बाद भी यही पाया,
वह मेरी भावना को कभी समझ न पाया।
उनकी उम्मीदों का भार उठाया,
अपना अस्तित्व कई बार मिटाया।
पर जब भी खुद को उनके करीब पाया,
दिल ने वही दूरी बार-बार दोहराया।
शायद यह ससुराल का दस्तूर है,
जहाँ रिश्तों में भावनाओं का फासला भरपूर है।
मैंने तो प्यार और अपनापन दिया,
पर बदले में सिर्फ खामोशी का शूर है।
कहानी यही है, बस इसे समझो,
अपनों के बीच भी पराया बनो।
क्योंकि ससुराल में अपनापन,
कभी-कभी बस एक सपना बनो।
©Writer Mamta Ambedkar
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