**धर्म युद्ध**
धर्म के नाम पर उठे तलवारें,
सच की राह पर हैं अंधेरे कई यारें।
आस्था के दीप जलते,
पर भक्ति की आड़ में, दिलों में द्वेष पलते।
स्वार्थ की भट्टी में तपते,
सत्य को तोड़ते, झूठ से जिएं।
धर्म का चश्मा चढ़ाकर,
आदमी ने इंसानियत को ही भुला दिया।
हर धर्म में है प्रेम की बूँद,
क्यों बन गए हम, दुश्मन के भी हमसफर?
जब तक न हो एकता का सुर,
युद्ध की आग में जलते रहेंगे सबतर।
उठो, आइए मिलकर गुनगुनाएँ,
धर्म का पाठ सिखाएँ, प्रेम की धुन सुनाएँ।
क्योंकि सच्चा धर्म है, जो जोड़ता सबको,
इंसानियत की राह पर चलना, यही है मूल मंत्र।
©Shailendra Gond kavi
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