ये मुझे क्या हो गया, क्या हुआ करता था मैं,
रौशनी था कभी, अब धुंआ बन गया मैं।
हवा बनके जो चलता था जमाने के खिलाफ़,
आज खुद की ही आवाज़ से डरा हुआ मैं।
कभी सितारे थे मेरी मुट्ठी में क़ैद,
आज चाँदनी का भी मोहताज हुआ मैं।
जो हर दर्द को हंसकर झेल लिया करता था,
अब टूटे हुए ख्वाबों का मलबा हुआ मैं।
खुदा से भी कभी शिकवा नहीं किया,
पर आज अपनी ही तन्हाई से लड़ता हूँ मैं।
क्या था, क्या बन गया, ये ग़म सताता है,
कि आइना भी अब मुझे पहचान नहीं पाता है।
©UNCLE彡RAVAN
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