बिछड़ना तुमसे नियति पर प्राण संकट घिर गया था,
यूं लगा कुछ गांठ से मानो हमारी गिर गया था,
मांग बैठा था समंदर सब बटोरे सीप मोती
याचना करती रही थी आंसुओं से पांव धोती..
तुम विदा में दे न पाए एक आलिंगन हमारा..
और तुम आये नहीं आना ज़रूरी था तुम्हारा।
सृजना के अंतर्मन से...💞
लेखक - Shubh Pandit ✨ इलाहाबादी ✨
©Dharma pandit( Unbreakable)
Continue with Social Accounts
Facebook Googleor already have account Login Here