हमारे ख़याल से भी ज़्यादा ताक़त रखती है
हमारे ख़यालों की ताक़त।
जो हमें शिफ़ा भी दे सकती है और बीमारी भी
जो हमें सुकून भी दे सकती है और बेचैनी भी
जो हमें कभी अपनी ही सोच के पिंजरे में क़ैद कर सकती है,
तो कभी हर पिंजरा तोड़ कर ऊॅंची उड़ान भरना भी सिखा देती है।
लेकिन ये हमें तय करना है कि इन में से
हम अपना क्या अंजाम चाहते हैं??
इसलिए हमें चाहिए कि हम अपने ख़यालों की,
अपनी सोच की ताक़त को पहचाने
और अपने ज़ेहन में सिर्फ़ अच्छे,नेक और
उम्मीद से भरे ख़यालों को ही पनाह देना सीखें ।
©Sh@kila Niy@z
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