White भटक रही हूँ दर_ब _दर क़भी मंदिर, मस्जिद, चर्च तो क़भी गुरुद्वारा हे मेरे खुदा तू कहाँ छुपा है ज़रा ये तो बता,
आखिर वो सुकून कहाँ है जिसकी मुझे तलाश है ऐसी क्या चीज है जिसे पाने को दिल बेक़रार है, कहाँ मिलेगा वो आराम वो सुकून जिसे पाकर मैं हो जाऊंगी ख़ुशी से चूर जिससे आजाएगा मेरे चेहरे पर नूर और हो जाऊँगी खुदा तेरी रेहमतों से भरपूर,
कब करुँगी मैं तेरा शुक्र अदा कब मिलेगी मेरे दर्दो को शिफा
मंदिर में घंटी बजाऊं या चर्च में कैंडल लगाऊं दरगाह में कलमा पढ़ूं या
गुरूद्वारे में माथा टेकूँ रात दिन बस इसी सोच में गुम हूं के कहाँ जाकर मैं अपनी फिकरों को छोडूं,
नदियों में खोजूँ या पहाड़ों में जंगलो में जाऊँ या विराने में, कहीं तो होगा तू ताकी मैं कह सकूँ अल्लाह हू, ऐ मेरे खुदा तुझ तक आने का रास्ता बता जा या फिर अब तू ही आ जा,
कर कुछ ऐसा चमत्कार के हो जाये मुझे तेरा दीदार...|
©Kanchan
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