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ज़िंदगी, तुझे समझने में,बहुत मुश्किलें आयीं
सच कहूँ ,सच को कहने में ,बहुत मुश्किलें आयीं .
निकले तो थे घर से, किसी की तलाश में, मगर
उस शख़्स तक पहुँचने में ,बहुत मुश्किल आयी .
कई परतों में छुपी थी ,वो,पहचानना बहुत मुश्किल
हर हर्फ़ का,मतलब समझने में ,बहुत मुश्किल आयी .
लिख दिया ख़त,उसको,न जाने,किस बे ख़याली में
होश आने में,उसके बाद,मगर,बहुत मुश्किल आयी .
बहुत आसान था,रास्ते का टूटकर बिखर जाना
उसी रास्ते को,फिर समझने में,बहुत मुश्किल आयी .
भूलना ही होता,तो फिर क्यों लिखते,ग़ज़लें, वजलैं
उसको,ये राज,समझाने में,बहुत मुश्किल आयी .
ये दुनियाँ,तो बिना सरहदों के,बनायी है क़ुदरत ने
मगर ये बात,उसको,समझने में बहुत,मुश्किल आयी .
कल खुलेगी आँख,तो नई नस्लें,पूछेंगीं सवाल, कि,
मोहब्बत के साथ जीने में,क्यों इतनी,मुश्किल आयी.
©Vishnu Hallu
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