चाॅंद तू चकोर मैं तेरे चहुँ ओर चक्कर लगा के चित्त तेरा मैं चुराउॅंगी।
मनभावन, मनमोहनी मूरतियाॅं को मतवारे इस मन में बसाऊॅंगी।
प्रेम जो अगर पा लिया इस पागल मन में,
तो देख-देख दर्पण में छवि अपनी ही इतराऊँगी।
जग -जग रतियों को सोच कर तेरी बतियों को,
मौन रहकर मंद मंद मुस्काऊॅंगी।
करके श्रृंगार करुॅंगी तेरा इंतजार,
तू आए या ना आए मैं तो जग कर पूरी रात गुजरूॅंगी।
चाहे दुनियाँ अब बावली कहें मुझको,
लेकिन अब मैं तुझको ना बिसराउॅंगी।
माना मैं हूंँ गोरी ;तू सांवला सलोना है,
प्रेम में तेरे रंग मैं भी रंग जाऊॅंगी।
दूॅंगी बिसरा दुख -दर्द इस दुनियाँ के,
बस तेरी हो के तुझमे समा जाऊंगी।
©Riyanka Alok Madeshiya
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