White बचपन जिया मस्ती में माँ बाप के शासन में,
राजकुमार सी ज़िन्दगी पाकर भी बेकार हो गए..!
आज आई है बहु बन कर बेटों की देखो,
माँ बाप बच्चों के प्यार के तलबगार हो गए..!
कभी लड़ते थे माँ बाप के लिए सभी से,
आज लड़ते माँ बाप की संपत्ति के हक़दार हो गए..!
बनाया महल बड़े जतन से खुशियों की उम्मीद में,
आज उसी में जैसे किरायेदार हो गए..!
बूढ़ी हड्डियों को अपनी ताक़त का जोर दिखा,
कमजोर मानसिकता वाले भी ताक़तवर हो गए..!
सिखाया चलना उंगली पकड़ जिन्होंने,
जीवन जीने का जो सार दे गए..!
सच में बड़े हो गए बच्चे अब,
खुद से ही समझदार हो गए..!
भूल कर मर्यादा सारी,
जुबाँ अपशब्द की दरबार हो गए..!
कभी चोट लगने पर जो पुकारे माँ,
आज खुद ही जैसे असरदार हो गए..!
सेवाभाव सब भूल गए,
नकारात्मकता का किरदार हो गए..!
नहीं रहे जब माता पिता दुनियाँ में,
दिखावे के सभी वफादार हो गए..!
©SHIVA KANT(Shayar)
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