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White छूटते क्रिकेट का रंज ओ दर्द लाता है, बचपना भी जाने कैसे छूट जाता है। लड़के जिनके संग हंसी में खो गई थीं राहें, ज़िंदगी का जाल एक दिन सबको फँसाता है। थी ज़मीं मैदान की और आसमान अपना, अब वो ख़्वाब आँखों में ही सिमट जाता है। जिम्मेदारियों का बोझ ढोते-ढोते हम बड़े हो गए अब खुद से ही अपना बचपन जी चुराता है। वो गुलेल, वो पतंगें, खेल के जो साथी, हर क़दम पे दिल उन्हें फिर से बुलाता है। बचपन की कसक ये दिल से जाती ही नहीं, वो फ़िज़ा, वो बेफिक्री फिर कौन पाता है । समंदर अब भी गुम हैं चंद सवालातों में हर जेहन में वो ख़्याल भला किसके आता है राजीव ©samandar Speaks

#मोटिवेशनल #good_night  White छूटते क्रिकेट का रंज ओ दर्द लाता है,
बचपना भी जाने कैसे छूट जाता है।

लड़के जिनके संग हंसी में खो गई थीं राहें,
ज़िंदगी का जाल एक दिन सबको फँसाता है।

थी ज़मीं मैदान की और आसमान अपना,
अब वो ख़्वाब आँखों में ही सिमट जाता है।

जिम्मेदारियों का बोझ ढोते-ढोते हम बड़े हो गए 
अब खुद से ही अपना बचपन जी चुराता है।

वो गुलेल, वो पतंगें, खेल के जो साथी,
हर क़दम पे दिल उन्हें फिर से बुलाता है।

बचपन की कसक ये दिल से जाती ही नहीं,
वो फ़िज़ा, वो बेफिक्री फिर कौन पाता है
।
समंदर अब भी गुम हैं चंद सवालातों में
हर जेहन में वो ख़्याल भला किसके आता है 
राजीव

©samandar Speaks

White ज़िंदगी की तहरीरें हर पन्ने पर लिखा, पर पढ़ा नहीं, ज़िंदगी की तहरीर कोई समझा नहीं। कभी बहारों में खिला फूल बन गए, कभी पतझड़ में भी दरख़्त झुका नहीं। इक ख़्वाब क्या, के ख़ुद को भूल गए, ख़ुद को पाया, तो कोई अपना रहा नहीं। ग़म के दरिया में अक्सर डूबते रहे, साहिल मिला भी, तो किनारा सजा नहीं। ख़्वाब आंखों में हर रोज़ जागते रहे, पर तक़दीर का लम्हा कभी मिला नहीं। राहें लंबी हैं, मंज़िलें धुंधली सी, कोई राहगीर भी साथ चला नहीं। हर घड़ी ने सबक़ तो सिखाया मगर, जिनसे फिर से उठें वो सबक़ मिला नहीं। ज़िंदगी बस यूं ही कटती जाती है, चाहे हंस लो, मगर दर्द छुपा नहीं। ©samandar Speaks

#कविता #good_night  White ज़िंदगी की तहरीरें

हर पन्ने पर लिखा, पर पढ़ा नहीं,
ज़िंदगी की तहरीर कोई समझा नहीं।

कभी बहारों में खिला फूल बन गए,
कभी पतझड़ में भी दरख़्त झुका नहीं।

इक ख़्वाब क्या, के ख़ुद को भूल गए,
ख़ुद को पाया, तो कोई अपना रहा नहीं।

ग़म के दरिया में अक्सर डूबते रहे,
साहिल मिला भी, तो किनारा सजा नहीं।

ख़्वाब आंखों में हर रोज़ जागते रहे,
पर तक़दीर का लम्हा कभी मिला नहीं।

राहें लंबी हैं, मंज़िलें धुंधली सी,
कोई राहगीर भी साथ चला नहीं।

हर घड़ी ने सबक़ तो सिखाया मगर,
जिनसे फिर से उठें वो सबक़ मिला नहीं।

ज़िंदगी बस यूं ही कटती जाती है,
चाहे हंस लो, मगर दर्द छुपा नहीं।

©samandar Speaks
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White छूटते क्रिकेट का रंज ओ दर्द लाता है, बचपना भी जाने कैसे छूट जाता है। लड़के जिनके संग हंसी में खो गई थीं राहें, ज़िंदगी का जाल एक दिन सबको फँसाता है। थी ज़मीं मैदान की और आसमान अपना, अब वो ख़्वाब आँखों में ही सिमट जाता है। जिम्मेदारियों का बोझ ढोते-ढोते हम बड़े हो गए अब खुद से ही अपना बचपन जी चुराता है। वो गुलेल, वो पतंगें, खेल के जो साथी, हर क़दम पे दिल उन्हें फिर से बुलाता है। बचपन की कसक ये दिल से जाती ही नहीं, वो फ़िज़ा, वो बेफिक्री फिर कौन पाता है । समंदर अब भी गुम हैं चंद सवालातों में हर जेहन में वो ख़्याल भला किसके आता है राजीव ©samandar Speaks

#मोटिवेशनल #good_night  White छूटते क्रिकेट का रंज ओ दर्द लाता है,
बचपना भी जाने कैसे छूट जाता है।

लड़के जिनके संग हंसी में खो गई थीं राहें,
ज़िंदगी का जाल एक दिन सबको फँसाता है।

थी ज़मीं मैदान की और आसमान अपना,
अब वो ख़्वाब आँखों में ही सिमट जाता है।

जिम्मेदारियों का बोझ ढोते-ढोते हम बड़े हो गए 
अब खुद से ही अपना बचपन जी चुराता है।

वो गुलेल, वो पतंगें, खेल के जो साथी,
हर क़दम पे दिल उन्हें फिर से बुलाता है।

बचपन की कसक ये दिल से जाती ही नहीं,
वो फ़िज़ा, वो बेफिक्री फिर कौन पाता है
।
समंदर अब भी गुम हैं चंद सवालातों में
हर जेहन में वो ख़्याल भला किसके आता है 
राजीव

©samandar Speaks

White ज़िंदगी की तहरीरें हर पन्ने पर लिखा, पर पढ़ा नहीं, ज़िंदगी की तहरीर कोई समझा नहीं। कभी बहारों में खिला फूल बन गए, कभी पतझड़ में भी दरख़्त झुका नहीं। इक ख़्वाब क्या, के ख़ुद को भूल गए, ख़ुद को पाया, तो कोई अपना रहा नहीं। ग़म के दरिया में अक्सर डूबते रहे, साहिल मिला भी, तो किनारा सजा नहीं। ख़्वाब आंखों में हर रोज़ जागते रहे, पर तक़दीर का लम्हा कभी मिला नहीं। राहें लंबी हैं, मंज़िलें धुंधली सी, कोई राहगीर भी साथ चला नहीं। हर घड़ी ने सबक़ तो सिखाया मगर, जिनसे फिर से उठें वो सबक़ मिला नहीं। ज़िंदगी बस यूं ही कटती जाती है, चाहे हंस लो, मगर दर्द छुपा नहीं। ©samandar Speaks

#कविता #good_night  White ज़िंदगी की तहरीरें

हर पन्ने पर लिखा, पर पढ़ा नहीं,
ज़िंदगी की तहरीर कोई समझा नहीं।

कभी बहारों में खिला फूल बन गए,
कभी पतझड़ में भी दरख़्त झुका नहीं।

इक ख़्वाब क्या, के ख़ुद को भूल गए,
ख़ुद को पाया, तो कोई अपना रहा नहीं।

ग़म के दरिया में अक्सर डूबते रहे,
साहिल मिला भी, तो किनारा सजा नहीं।

ख़्वाब आंखों में हर रोज़ जागते रहे,
पर तक़दीर का लम्हा कभी मिला नहीं।

राहें लंबी हैं, मंज़िलें धुंधली सी,
कोई राहगीर भी साथ चला नहीं।

हर घड़ी ने सबक़ तो सिखाया मगर,
जिनसे फिर से उठें वो सबक़ मिला नहीं।

ज़िंदगी बस यूं ही कटती जाती है,
चाहे हंस लो, मगर दर्द छुपा नहीं।

©samandar Speaks
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