राजनीति का आधुनिक रण
राजनीति का रंगमंच अद्भुत है,
जहां नायक विलेन से मजबूत है।
वादों का जादू, भाषणों की बौछार,
जनता का मन भरमाने का व्यापार।
सत्ता के संग्राम में छल का खेल,
नैतिकता का टूटता हर दिन पहरेदारी जेल।
सपनों के सौदागर हर ओर खड़े,
कुर्सी के खातिर रिश्ते भी पड़े।
नीति-नियम सब कागज में सीमित,
राजनीति के रण में धर्म भी विभाजित।
जनता के मुद्दे चुनाव के बाद खो जाएं,
राजनेताओं के वादे अधूरे रह जाएं।
विकास की बात पर झगड़े का स्वर,
जाति-धर्म में उलझा हर दर पर।
चुनावी चक्रव्यूह का ऐसा प्रचार,
सच छुपा, झूठ बना राजदार।
हर कोई नेता, हर कोई ज्ञानी,
पर कौन सुधारेगा जनता की कहानी?
यह राजनीति है, व्यंग की मिसाल,
जहां सत्ता की माया है सबसे बेमिसाल।
©Avinash Jha
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