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Unsplash बहूत रात जागने के बावजूद. एक गहरी नींद मुझे मिली नहीं कितना बड़ा ये जहांन है फिर भी रहने के लिए दो गज़ ज़मीन मुझे मिली नहीं खुलकर रोने क़ी ख़्वाहिश थीं मेरी. पर रोने के लिए घर मेi खाली कोना मुझे मिला नहीं ©Parasram Arora

 Unsplash बहूत रात  जागने के बावजूद.
 एक गहरी नींद मुझे  मिली नहीं 

कितना बड़ा ये जहांन है 
फिर भी  रहने के लिए 
दो गज़ ज़मीन मुझे मिली नहीं 

खुलकर रोने क़ी ख़्वाहिश थीं मेरी.
पर रोने के लिए घर मेi खाली कोना मुझे मिला नहीं

©Parasram Arora

दो गज़ जमीन

15 Love

#krishna_flute #Mahabharat

कुरुक्षेत्र की धरा पर, रण का उन्माद था, दोनों ओर खड़े, अपनों का संवाद था। धनुष उठाए वीर अर्जुन, किंतु व्याकुल मन, सामने खड़ा कुल-परिवार, और प्रियजन। व्यूह में थे गुरु द्रोण, आशीष जिनसे पाया, भीष्म पितामह खड़े, जिन्होंने धर्म सिखाया। मातुल शकुनि, सखा दुर्योधन का दंभ, किंतु कौरवों के संग, सत्य का कहाँ था पंथ? पांडवों के साथ थे, धर्म का साथ निभाना, पर अपनों को हानि पहुँचा, क्या धर्म कहलाना? जिनसे बचपन के सुखद क्षण बिताए, आज उन्हीं पर बाण चलाने को उठाए। "हे कृष्ण! यह कैसी विकट घड़ी आई, जब अपनों को मारने की आज्ञा मुझे दिलाई। क्या सत्य-असत्य का भेद इतना गहरा, जो मुझे अपनों का ही रक्त बहाए कह रहा?" अर्जुन के मन में यह विषाद का सवाल, धर्म और कर्तव्य का बना था जंजाल। कृष्ण मुस्काए, बोले प्रेम और करुणा से, "जो सत्य का संग दे, वही विजय का आस है। हे पार्थ, कर्म करो, न फल की सोच रखो, धर्म की रेखा पर, अपना मनोबल सखो। यह युद्ध नहीं, यह धर्म का निर्णय है, तुम्हारा उद्देश्य बस सत्य का उद्गम है। ©Avinash Jha

#aeastheticthoughtes #संशय #Mahabharat #Krishna  कुरुक्षेत्र की धरा पर, रण का उन्माद था,
दोनों ओर खड़े, अपनों का संवाद था।
धनुष उठाए वीर अर्जुन, किंतु व्याकुल मन,
सामने खड़ा कुल-परिवार, और प्रियजन।

व्यूह में थे गुरु द्रोण, आशीष जिनसे पाया,
भीष्म पितामह खड़े, जिन्होंने धर्म सिखाया।
मातुल शकुनि, सखा दुर्योधन का दंभ,
किंतु कौरवों के संग, सत्य का कहाँ था पंथ?

पांडवों के साथ थे, धर्म का साथ निभाना,
पर अपनों को हानि पहुँचा, क्या धर्म कहलाना?
जिनसे बचपन के सुखद क्षण बिताए,
आज उन्हीं पर बाण चलाने को उठाए।

"हे कृष्ण! यह कैसी विकट घड़ी आई,
जब अपनों को मारने की आज्ञा मुझे दिलाई।
क्या सत्य-असत्य का भेद इतना गहरा,
जो मुझे अपनों का ही रक्त बहाए कह रहा?"

अर्जुन के मन में यह विषाद का सवाल,
धर्म और कर्तव्य का बना था जंजाल।
कृष्ण मुस्काए, बोले प्रेम और करुणा से,
"जो सत्य का संग दे, वही विजय का आस है।

हे पार्थ, कर्म करो, न फल की सोच रखो,
धर्म की रेखा पर, अपना मनोबल सखो।
यह युद्ध नहीं, यह धर्म का निर्णय है,
तुम्हारा उद्देश्य बस सत्य का उद्गम है।

©Avinash Jha

White काफ़ी दिनों तक साथ साथ हम चलते रहे फिर एक दिन अलग हुए अब मुझे तलाश है उस जगह की जहा नदी के दोनों किनारे जा कर मिलते हो ©Parasram Arora

 White काफ़ी  दिनों तक  
साथ साथ  हम चलते 
रहे फिर एक 
दिन अलग हुए 

अब मुझे  तलाश है 
उस जगह की जहा 
नदी के दोनों किनारे
 जा कर मिलते हो

©Parasram Arora

दो किनारे

9 Love

White माना कि दो अलग अलग चोरो पर. हैँ कल्पना और यथार्थ तुम्हे ध्यान देना पढ़ेगा. कि कहीं तुमारी कल्पना यथार्थ बनने की कशिश न करने लगे ©Parasram Arora

#कविता  White माना कि दो अलग
 अलग चोरो पर. हैँ 
कल्पना  और  यथार्थ 

तुम्हे ध्यान देना पढ़ेगा. कि 
कहीं तुमारी
कल्पना
 यथार्थ बनने की 
कशिश न करने लगे

©Parasram Arora

दो छोर

17 Love

#लव

दे दो ना

162 View

Unsplash बहूत रात जागने के बावजूद. एक गहरी नींद मुझे मिली नहीं कितना बड़ा ये जहांन है फिर भी रहने के लिए दो गज़ ज़मीन मुझे मिली नहीं खुलकर रोने क़ी ख़्वाहिश थीं मेरी. पर रोने के लिए घर मेi खाली कोना मुझे मिला नहीं ©Parasram Arora

 Unsplash बहूत रात  जागने के बावजूद.
 एक गहरी नींद मुझे  मिली नहीं 

कितना बड़ा ये जहांन है 
फिर भी  रहने के लिए 
दो गज़ ज़मीन मुझे मिली नहीं 

खुलकर रोने क़ी ख़्वाहिश थीं मेरी.
पर रोने के लिए घर मेi खाली कोना मुझे मिला नहीं

©Parasram Arora

दो गज़ जमीन

15 Love

#krishna_flute #Mahabharat

कुरुक्षेत्र की धरा पर, रण का उन्माद था, दोनों ओर खड़े, अपनों का संवाद था। धनुष उठाए वीर अर्जुन, किंतु व्याकुल मन, सामने खड़ा कुल-परिवार, और प्रियजन। व्यूह में थे गुरु द्रोण, आशीष जिनसे पाया, भीष्म पितामह खड़े, जिन्होंने धर्म सिखाया। मातुल शकुनि, सखा दुर्योधन का दंभ, किंतु कौरवों के संग, सत्य का कहाँ था पंथ? पांडवों के साथ थे, धर्म का साथ निभाना, पर अपनों को हानि पहुँचा, क्या धर्म कहलाना? जिनसे बचपन के सुखद क्षण बिताए, आज उन्हीं पर बाण चलाने को उठाए। "हे कृष्ण! यह कैसी विकट घड़ी आई, जब अपनों को मारने की आज्ञा मुझे दिलाई। क्या सत्य-असत्य का भेद इतना गहरा, जो मुझे अपनों का ही रक्त बहाए कह रहा?" अर्जुन के मन में यह विषाद का सवाल, धर्म और कर्तव्य का बना था जंजाल। कृष्ण मुस्काए, बोले प्रेम और करुणा से, "जो सत्य का संग दे, वही विजय का आस है। हे पार्थ, कर्म करो, न फल की सोच रखो, धर्म की रेखा पर, अपना मनोबल सखो। यह युद्ध नहीं, यह धर्म का निर्णय है, तुम्हारा उद्देश्य बस सत्य का उद्गम है। ©Avinash Jha

#aeastheticthoughtes #संशय #Mahabharat #Krishna  कुरुक्षेत्र की धरा पर, रण का उन्माद था,
दोनों ओर खड़े, अपनों का संवाद था।
धनुष उठाए वीर अर्जुन, किंतु व्याकुल मन,
सामने खड़ा कुल-परिवार, और प्रियजन।

व्यूह में थे गुरु द्रोण, आशीष जिनसे पाया,
भीष्म पितामह खड़े, जिन्होंने धर्म सिखाया।
मातुल शकुनि, सखा दुर्योधन का दंभ,
किंतु कौरवों के संग, सत्य का कहाँ था पंथ?

पांडवों के साथ थे, धर्म का साथ निभाना,
पर अपनों को हानि पहुँचा, क्या धर्म कहलाना?
जिनसे बचपन के सुखद क्षण बिताए,
आज उन्हीं पर बाण चलाने को उठाए।

"हे कृष्ण! यह कैसी विकट घड़ी आई,
जब अपनों को मारने की आज्ञा मुझे दिलाई।
क्या सत्य-असत्य का भेद इतना गहरा,
जो मुझे अपनों का ही रक्त बहाए कह रहा?"

अर्जुन के मन में यह विषाद का सवाल,
धर्म और कर्तव्य का बना था जंजाल।
कृष्ण मुस्काए, बोले प्रेम और करुणा से,
"जो सत्य का संग दे, वही विजय का आस है।

हे पार्थ, कर्म करो, न फल की सोच रखो,
धर्म की रेखा पर, अपना मनोबल सखो।
यह युद्ध नहीं, यह धर्म का निर्णय है,
तुम्हारा उद्देश्य बस सत्य का उद्गम है।

©Avinash Jha

White काफ़ी दिनों तक साथ साथ हम चलते रहे फिर एक दिन अलग हुए अब मुझे तलाश है उस जगह की जहा नदी के दोनों किनारे जा कर मिलते हो ©Parasram Arora

 White काफ़ी  दिनों तक  
साथ साथ  हम चलते 
रहे फिर एक 
दिन अलग हुए 

अब मुझे  तलाश है 
उस जगह की जहा 
नदी के दोनों किनारे
 जा कर मिलते हो

©Parasram Arora

दो किनारे

9 Love

White माना कि दो अलग अलग चोरो पर. हैँ कल्पना और यथार्थ तुम्हे ध्यान देना पढ़ेगा. कि कहीं तुमारी कल्पना यथार्थ बनने की कशिश न करने लगे ©Parasram Arora

#कविता  White माना कि दो अलग
 अलग चोरो पर. हैँ 
कल्पना  और  यथार्थ 

तुम्हे ध्यान देना पढ़ेगा. कि 
कहीं तुमारी
कल्पना
 यथार्थ बनने की 
कशिश न करने लगे

©Parasram Arora

दो छोर

17 Love

#लव

दे दो ना

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