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White ये सोच कर ही मर्दों ने पूरी उम्र गुजार दी.. मैं कैसे भी रहूं मेरा परिवार सुकून से रहे... ©Andy Mann

#शायरी #मर्द  White ये सोच कर ही मर्दों ने 
पूरी उम्र गुजार दी..
मैं कैसे भी रहूं मेरा परिवार 
सुकून से रहे...

©Andy Mann

#मर्द @Arshad Siddiqui @Ashutosh Mishra Santosh Narwar Aligarh (9058141336) Dr. uvsays @Hardik Mahajan

34 Love

White #जीवन का वो दौर जब गेहूं से भरे कट्टे को कैरियर पर रखकर उसको पापा की साइकिल पर काली रबर की ट्यूब से गद्दी से होते हुए दो-तीन बार लपेटकर ठीक से सेट करना कोई आसान टास्क नहीं रहा,, खैर!! ये सब करने के बाद साइकिल को रोड पर संभालना और ज्यादा जटिल हो जाता था जब कैरियर के चिमटे कमजोर हों क्योंकि उस condition में वो भारी भरकम कट्टा इधर उधर लहराता था तो उसे साधने के लिए एक हाथ पीछे कर कट्टे का मुहँ पकड़ना पड़ता था,, चक्की करीब आधा किलोमीटर दूरी थी पर वो आधा किलोमीटर मील का पत्थर हो जैसे ऐसी लगती थी! अब जैसे तैसे चक्की पर पहुंचता तो वो चक्की वाले बड़के भैया पसीने में तर एक बार में खींचकर उतार देते थे पर साइकिल पूरी ट्रेन के पुल की तरह झंझना जाती थी! भैया ने कट्टा तोल दिया है और उसी पर 39 किलो 500 ग्राम पिंक स्याही से लिख दिया है,, पापा का नाम पल्ली तरफ लिखा हुआ है पहले से ही,, अब चलता हूं हवा खाता हुआ उसी खटारा साइकिल पे शर्ट के बटन खोले हुए मस्त एक दम ये सोचते हुए कि कल फिर इसे लेने आना है वाली टेंशन के साथ! ©Andy Mann

#वो_सुनहरा_दौर #विचार #जीवन  White #जीवन का वो दौर जब गेहूं से भरे कट्टे को कैरियर पर रखकर उसको पापा की साइकिल पर काली रबर की ट्यूब से गद्दी से होते हुए दो-तीन बार लपेटकर ठीक से सेट करना कोई आसान टास्क नहीं रहा,, खैर!! ये सब करने के बाद साइकिल को रोड पर संभालना और ज्यादा जटिल हो जाता था जब कैरियर के चिमटे कमजोर हों क्योंकि उस condition में वो भारी भरकम कट्टा इधर उधर लहराता था तो उसे साधने के लिए एक हाथ पीछे कर कट्टे का मुहँ पकड़ना पड़ता था,, चक्की करीब आधा किलोमीटर दूरी थी पर वो आधा किलोमीटर मील का पत्थर हो जैसे ऐसी लगती थी! अब जैसे तैसे चक्की पर पहुंचता तो वो चक्की वाले बड़के भैया पसीने में तर एक बार में खींचकर उतार देते थे पर साइकिल पूरी ट्रेन के पुल की तरह झंझना जाती थी!
भैया ने कट्टा तोल दिया है और उसी पर 39 किलो 500 ग्राम पिंक स्याही से लिख दिया है,, पापा का नाम पल्ली तरफ लिखा हुआ है पहले से ही,, अब चलता हूं हवा खाता हुआ उसी खटारा साइकिल पे शर्ट के बटन खोले हुए मस्त एक दम ये सोचते हुए कि कल फिर इसे लेने आना है वाली टेंशन के साथ!

©Andy Mann

#वो_सुनहरा_दौर @Ravi Ranjan Kumar Kausik अदनासा- @Arshad Siddiqui Santosh Narwar Aligarh (9058141336) Dr. uvsays

35 Love

White उन्हें यह फ़िक्र है हरदम, नयी तर्ज़-ए-ज़फ़ा क्या है? हमें यह शौक है देखें, सितम की इन्तहा क्या है? दहर से क्यों ख़फ़ा रहें, चर्ख का क्या ग़िला करें। सारा जहाँ अदू सही, आओ! मुक़ाबला करें॥ इन जोशीली पंक्तियों से उनके शौर्य का अनुमान लगाया जा सकता है। चन्द्रशेखर आजाद से पहली मुलाकात के समय जलती हुई मोमबती पर हाथ रखकर भगतसिंह ने कसम खायी थी कि उनकी जिन्दगी देश पर ही कुर्बान होगी और उन्होंने अपनी वह कसम पूरी कर दिखायी। 28 सितंबर को शहीद भगतसिंह का जन्मदिन है। आज के समय में उन्हें याद करने का हमारे लिए बहुत महत्व है। शहीद भगतसिंह की क़ुर्बानी, बहादुरी, और ख़ुशी-ख़ुशी फाँसी के तख़्ते पर झूल जाने के बारे में कमोबेश देश के ज़्यादातर लोग जानते हैं। “किसी ने सच ही कहा है, सुधार बूढ़े आदमी नहीं कर सकते । वे बहुत ही बुद्धिमान और समझदार होते हैं। सुधार तो होते हैं युवकों के परिश्रम, साहस, बलिदान और निष्ठा से, जिनको भयभीत होना आता ही नहीं और जो विचार कम और अनुभव अधिक करते हैं ।” - भगत सिंह - क्या आप कल्पना कर सकते हैं, एक हुकूमत, जिसका दुनिया के इतने बड़े हिस्से पर शासन था, जिसके बार में कहा जाता था कि उनके शासन में सूर्य कभी अस्त नहीं होता। इतनी ताकतवर हुकूमत, एक 23 साल के युवक से भयभीत हो गई थी। क्या थे भगत सिंह के आखिरी शब्द - फांसी के समय जो कुछ आधिकारिक लोग शामिल थे उनमें यूरोप के डिप्टी कमिशनर भी शामिल थे। जितेंदर सान्याल की लिखी किताब भगत सिंह के अनुसार ठीक फांसी पर चढऩे से पहले के वक्त भगत सिंह ने उनसे कहा, मिस्टर मजिस्ट्रेट आप बेहद भाग्यशाली हैं कि आपको यह देखने को मिल रहा है कि भारत के कांतिकारी किस तरह अपने आदर्शों के लिए फांसी पर भी झूल जाते हैं। मैं नास्तिक क्यों हूं - यह लेख भगत सिंह ने जेल में रहते हुए लिखा था और यह 27 सितम्बर 1931 को लाहौर के अखबार “ द पीपल “ में प्रकाशित हुआ । इस लेख में भगतसिंह ने ईश्वर कि उपस्थिति पर अनेक तर्कपूर्ण सवाल खड़े किये हैं और इस संसार के निर्माण , मनुष्य के जन्म , मनुष्य के मन में ईश्वर की कल्पना के साथ साथ संसार में मनुष्य की दीनता , उसके शोषण , दुनिया में व्याप्त अराजकता और और वर्गभेद की स्थितियों का भी विश्लेषण किया है । यह भगत सिंह के लेखन के सबसे चर्चित हिस्सों में रहा है। 🙏🏻💐🙏🏻 ©Andy Mann

#मोटिवेशनल #भगत_सिंह  White उन्हें यह फ़िक्र है हरदम, नयी तर्ज़-ए-ज़फ़ा क्या है?
हमें यह शौक है देखें, सितम की इन्तहा क्या है? दहर से क्यों ख़फ़ा रहें, चर्ख का क्या ग़िला करें। सारा जहाँ अदू सही, आओ! मुक़ाबला करें॥
इन जोशीली पंक्तियों से उनके शौर्य का अनुमान लगाया जा सकता है। चन्द्रशेखर आजाद से पहली मुलाकात के समय जलती हुई मोमबती पर हाथ रखकर भगतसिंह ने कसम खायी थी कि उनकी जिन्दगी देश पर ही कुर्बान होगी और उन्होंने अपनी वह कसम पूरी कर दिखायी।

28 सितंबर को शहीद भगतसिंह का जन्मदिन है। आज के समय में उन्हें याद करने का हमारे लिए बहुत महत्व है। शहीद भगतसिंह की क़ुर्बानी, बहादुरी, और ख़ुशी-ख़ुशी फाँसी के तख़्ते पर झूल जाने के बारे में कमोबेश देश के ज़्यादातर लोग जानते हैं।

“किसी ने सच ही कहा है, सुधार बूढ़े आदमी नहीं कर सकते । वे बहुत ही बुद्धिमान और समझदार होते हैं। सुधार तो होते हैं युवकों के परिश्रम, साहस, बलिदान और निष्ठा से, जिनको भयभीत होना आता ही नहीं और जो विचार कम और अनुभव अधिक करते हैं ।”
   - भगत सिंह -
क्या आप कल्पना कर सकते हैं, एक हुकूमत, जिसका दुनिया के इतने बड़े हिस्से पर शासन था, जिसके बार में कहा जाता था कि उनके शासन में सूर्य कभी अस्त नहीं होता। इतनी ताकतवर हुकूमत, एक 23 साल के युवक से भयभीत हो गई थी।
क्या थे भगत सिंह के आखिरी शब्द -
फांसी के समय जो कुछ आधिकारिक लोग शामिल थे उनमें यूरोप के डिप्टी कमिशनर भी शामिल थे। जितेंदर सान्याल की लिखी किताब भगत सिंह के अनुसार ठीक फांसी पर चढऩे से पहले के वक्त भगत सिंह ने उनसे कहा, मिस्टर मजिस्ट्रेट आप बेहद भाग्यशाली हैं कि आपको यह देखने को मिल रहा है कि भारत के कांतिकारी किस तरह अपने आदर्शों के लिए फांसी पर भी झूल जाते हैं। 
मैं नास्तिक क्यों हूं -
यह लेख भगत सिंह ने जेल में रहते हुए लिखा था और यह 27 सितम्बर 1931 को लाहौर के अखबार “ द पीपल “ में प्रकाशित हुआ । इस लेख में भगतसिंह ने ईश्वर कि उपस्थिति पर अनेक तर्कपूर्ण सवाल खड़े किये हैं और इस संसार के निर्माण , मनुष्य के जन्म , मनुष्य के मन में ईश्वर की कल्पना के साथ साथ संसार में मनुष्य की दीनता , उसके शोषण , दुनिया में व्याप्त अराजकता और और वर्गभेद की स्थितियों का भी विश्लेषण किया है । यह भगत सिंह के लेखन के सबसे चर्चित हिस्सों में रहा है।


            🙏🏻💐🙏🏻

©Andy Mann
#tohqr

#tohqr Umer bate kam leke ghumat bari bum...

81 View

#HisamuddeenKhanHisam #Bollywood #actor
#HisamudeenKhanHisam #actor

White ये सोच कर ही मर्दों ने पूरी उम्र गुजार दी.. मैं कैसे भी रहूं मेरा परिवार सुकून से रहे... ©Andy Mann

#शायरी #मर्द  White ये सोच कर ही मर्दों ने 
पूरी उम्र गुजार दी..
मैं कैसे भी रहूं मेरा परिवार 
सुकून से रहे...

©Andy Mann

#मर्द @Arshad Siddiqui @Ashutosh Mishra Santosh Narwar Aligarh (9058141336) Dr. uvsays @Hardik Mahajan

34 Love

White #जीवन का वो दौर जब गेहूं से भरे कट्टे को कैरियर पर रखकर उसको पापा की साइकिल पर काली रबर की ट्यूब से गद्दी से होते हुए दो-तीन बार लपेटकर ठीक से सेट करना कोई आसान टास्क नहीं रहा,, खैर!! ये सब करने के बाद साइकिल को रोड पर संभालना और ज्यादा जटिल हो जाता था जब कैरियर के चिमटे कमजोर हों क्योंकि उस condition में वो भारी भरकम कट्टा इधर उधर लहराता था तो उसे साधने के लिए एक हाथ पीछे कर कट्टे का मुहँ पकड़ना पड़ता था,, चक्की करीब आधा किलोमीटर दूरी थी पर वो आधा किलोमीटर मील का पत्थर हो जैसे ऐसी लगती थी! अब जैसे तैसे चक्की पर पहुंचता तो वो चक्की वाले बड़के भैया पसीने में तर एक बार में खींचकर उतार देते थे पर साइकिल पूरी ट्रेन के पुल की तरह झंझना जाती थी! भैया ने कट्टा तोल दिया है और उसी पर 39 किलो 500 ग्राम पिंक स्याही से लिख दिया है,, पापा का नाम पल्ली तरफ लिखा हुआ है पहले से ही,, अब चलता हूं हवा खाता हुआ उसी खटारा साइकिल पे शर्ट के बटन खोले हुए मस्त एक दम ये सोचते हुए कि कल फिर इसे लेने आना है वाली टेंशन के साथ! ©Andy Mann

#वो_सुनहरा_दौर #विचार #जीवन  White #जीवन का वो दौर जब गेहूं से भरे कट्टे को कैरियर पर रखकर उसको पापा की साइकिल पर काली रबर की ट्यूब से गद्दी से होते हुए दो-तीन बार लपेटकर ठीक से सेट करना कोई आसान टास्क नहीं रहा,, खैर!! ये सब करने के बाद साइकिल को रोड पर संभालना और ज्यादा जटिल हो जाता था जब कैरियर के चिमटे कमजोर हों क्योंकि उस condition में वो भारी भरकम कट्टा इधर उधर लहराता था तो उसे साधने के लिए एक हाथ पीछे कर कट्टे का मुहँ पकड़ना पड़ता था,, चक्की करीब आधा किलोमीटर दूरी थी पर वो आधा किलोमीटर मील का पत्थर हो जैसे ऐसी लगती थी! अब जैसे तैसे चक्की पर पहुंचता तो वो चक्की वाले बड़के भैया पसीने में तर एक बार में खींचकर उतार देते थे पर साइकिल पूरी ट्रेन के पुल की तरह झंझना जाती थी!
भैया ने कट्टा तोल दिया है और उसी पर 39 किलो 500 ग्राम पिंक स्याही से लिख दिया है,, पापा का नाम पल्ली तरफ लिखा हुआ है पहले से ही,, अब चलता हूं हवा खाता हुआ उसी खटारा साइकिल पे शर्ट के बटन खोले हुए मस्त एक दम ये सोचते हुए कि कल फिर इसे लेने आना है वाली टेंशन के साथ!

©Andy Mann

#वो_सुनहरा_दौर @Ravi Ranjan Kumar Kausik अदनासा- @Arshad Siddiqui Santosh Narwar Aligarh (9058141336) Dr. uvsays

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White उन्हें यह फ़िक्र है हरदम, नयी तर्ज़-ए-ज़फ़ा क्या है? हमें यह शौक है देखें, सितम की इन्तहा क्या है? दहर से क्यों ख़फ़ा रहें, चर्ख का क्या ग़िला करें। सारा जहाँ अदू सही, आओ! मुक़ाबला करें॥ इन जोशीली पंक्तियों से उनके शौर्य का अनुमान लगाया जा सकता है। चन्द्रशेखर आजाद से पहली मुलाकात के समय जलती हुई मोमबती पर हाथ रखकर भगतसिंह ने कसम खायी थी कि उनकी जिन्दगी देश पर ही कुर्बान होगी और उन्होंने अपनी वह कसम पूरी कर दिखायी। 28 सितंबर को शहीद भगतसिंह का जन्मदिन है। आज के समय में उन्हें याद करने का हमारे लिए बहुत महत्व है। शहीद भगतसिंह की क़ुर्बानी, बहादुरी, और ख़ुशी-ख़ुशी फाँसी के तख़्ते पर झूल जाने के बारे में कमोबेश देश के ज़्यादातर लोग जानते हैं। “किसी ने सच ही कहा है, सुधार बूढ़े आदमी नहीं कर सकते । वे बहुत ही बुद्धिमान और समझदार होते हैं। सुधार तो होते हैं युवकों के परिश्रम, साहस, बलिदान और निष्ठा से, जिनको भयभीत होना आता ही नहीं और जो विचार कम और अनुभव अधिक करते हैं ।” - भगत सिंह - क्या आप कल्पना कर सकते हैं, एक हुकूमत, जिसका दुनिया के इतने बड़े हिस्से पर शासन था, जिसके बार में कहा जाता था कि उनके शासन में सूर्य कभी अस्त नहीं होता। इतनी ताकतवर हुकूमत, एक 23 साल के युवक से भयभीत हो गई थी। क्या थे भगत सिंह के आखिरी शब्द - फांसी के समय जो कुछ आधिकारिक लोग शामिल थे उनमें यूरोप के डिप्टी कमिशनर भी शामिल थे। जितेंदर सान्याल की लिखी किताब भगत सिंह के अनुसार ठीक फांसी पर चढऩे से पहले के वक्त भगत सिंह ने उनसे कहा, मिस्टर मजिस्ट्रेट आप बेहद भाग्यशाली हैं कि आपको यह देखने को मिल रहा है कि भारत के कांतिकारी किस तरह अपने आदर्शों के लिए फांसी पर भी झूल जाते हैं। मैं नास्तिक क्यों हूं - यह लेख भगत सिंह ने जेल में रहते हुए लिखा था और यह 27 सितम्बर 1931 को लाहौर के अखबार “ द पीपल “ में प्रकाशित हुआ । इस लेख में भगतसिंह ने ईश्वर कि उपस्थिति पर अनेक तर्कपूर्ण सवाल खड़े किये हैं और इस संसार के निर्माण , मनुष्य के जन्म , मनुष्य के मन में ईश्वर की कल्पना के साथ साथ संसार में मनुष्य की दीनता , उसके शोषण , दुनिया में व्याप्त अराजकता और और वर्गभेद की स्थितियों का भी विश्लेषण किया है । यह भगत सिंह के लेखन के सबसे चर्चित हिस्सों में रहा है। 🙏🏻💐🙏🏻 ©Andy Mann

#मोटिवेशनल #भगत_सिंह  White उन्हें यह फ़िक्र है हरदम, नयी तर्ज़-ए-ज़फ़ा क्या है?
हमें यह शौक है देखें, सितम की इन्तहा क्या है? दहर से क्यों ख़फ़ा रहें, चर्ख का क्या ग़िला करें। सारा जहाँ अदू सही, आओ! मुक़ाबला करें॥
इन जोशीली पंक्तियों से उनके शौर्य का अनुमान लगाया जा सकता है। चन्द्रशेखर आजाद से पहली मुलाकात के समय जलती हुई मोमबती पर हाथ रखकर भगतसिंह ने कसम खायी थी कि उनकी जिन्दगी देश पर ही कुर्बान होगी और उन्होंने अपनी वह कसम पूरी कर दिखायी।

28 सितंबर को शहीद भगतसिंह का जन्मदिन है। आज के समय में उन्हें याद करने का हमारे लिए बहुत महत्व है। शहीद भगतसिंह की क़ुर्बानी, बहादुरी, और ख़ुशी-ख़ुशी फाँसी के तख़्ते पर झूल जाने के बारे में कमोबेश देश के ज़्यादातर लोग जानते हैं।

“किसी ने सच ही कहा है, सुधार बूढ़े आदमी नहीं कर सकते । वे बहुत ही बुद्धिमान और समझदार होते हैं। सुधार तो होते हैं युवकों के परिश्रम, साहस, बलिदान और निष्ठा से, जिनको भयभीत होना आता ही नहीं और जो विचार कम और अनुभव अधिक करते हैं ।”
   - भगत सिंह -
क्या आप कल्पना कर सकते हैं, एक हुकूमत, जिसका दुनिया के इतने बड़े हिस्से पर शासन था, जिसके बार में कहा जाता था कि उनके शासन में सूर्य कभी अस्त नहीं होता। इतनी ताकतवर हुकूमत, एक 23 साल के युवक से भयभीत हो गई थी।
क्या थे भगत सिंह के आखिरी शब्द -
फांसी के समय जो कुछ आधिकारिक लोग शामिल थे उनमें यूरोप के डिप्टी कमिशनर भी शामिल थे। जितेंदर सान्याल की लिखी किताब भगत सिंह के अनुसार ठीक फांसी पर चढऩे से पहले के वक्त भगत सिंह ने उनसे कहा, मिस्टर मजिस्ट्रेट आप बेहद भाग्यशाली हैं कि आपको यह देखने को मिल रहा है कि भारत के कांतिकारी किस तरह अपने आदर्शों के लिए फांसी पर भी झूल जाते हैं। 
मैं नास्तिक क्यों हूं -
यह लेख भगत सिंह ने जेल में रहते हुए लिखा था और यह 27 सितम्बर 1931 को लाहौर के अखबार “ द पीपल “ में प्रकाशित हुआ । इस लेख में भगतसिंह ने ईश्वर कि उपस्थिति पर अनेक तर्कपूर्ण सवाल खड़े किये हैं और इस संसार के निर्माण , मनुष्य के जन्म , मनुष्य के मन में ईश्वर की कल्पना के साथ साथ संसार में मनुष्य की दीनता , उसके शोषण , दुनिया में व्याप्त अराजकता और और वर्गभेद की स्थितियों का भी विश्लेषण किया है । यह भगत सिंह के लेखन के सबसे चर्चित हिस्सों में रहा है।


            🙏🏻💐🙏🏻

©Andy Mann
#tohqr

#tohqr Umer bate kam leke ghumat bari bum...

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#HisamuddeenKhanHisam #Bollywood #actor
#HisamudeenKhanHisam #actor
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